घनाक्षरी
शिव शंकर औघड़दानी गंग जटा धारी
भाल चंद्र सुशोभित सुन्दर मनोहारी
गले भुजंग माला धारी शिव संकटहारी
भूत-प्रेत को संग लिए भोले त्रिपुरारी
पार्वती पति शिव शंकर बड़े हैं अनाड़ी
जपो शंकर भजो भोले ॐ मंगलकारी
हे विषधर हे नीलकंठ हे औघड़दानी
जय हो जग के दाता तुमको बलिहारी
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©कॉपीराइट किरण सिंह
अच्छी घनाक्षरी कविता !
आभार