माना जख्म गहरा है….
माना जख्म गहरा है
अभी तक हरा है
तुम एक बार लगाकर तो देखो
प्यार के मरहम ने, हर जख्म भरा है।
अल्लाह तुम भी नही
भगवान मैं भी नही
गुनाह तुम्हारा भी है
गुनाह मेरा भी
पर इस नफरत से
दोनों को कुछ नही मिलेगा
तबाह घर तेरा भी है
तबाह घर मेरा भी।
बहाने को
इंसानियत का खून
ना गीता कहती है
ना कुरान कहती है
फिर धर्म के नाम पर
सिर्फ कट्टरता क्यूं रहती है।
अभी भी वक्त है
चलो
अपने गुनाह कूबूल कर लें
अपने अपने धर्म को
कट्टरता के शैतान से, दूर कर लें
प्यार के मरहम को
दिलों पर लग जाने दें।
भर जाने दें, इन घावों को
मानवता को मुस्काने दें।
माना जख्म गहरा है
अभी तक हरा है
तुम एक बार लगाकर तो देखो
प्यार के मरहम ने, हर जख्म भरा है….
सतीश बंसल