अलगावों के बीज बो रहे…
अलगावों के बीज बो रहे, जो घाटी के सीने में।
लगा रहे है आग द्रोह की, जो कश्मीर नगीने में॥
जिनको नापाकों की धरती, भारत मां से प्यारी है।
देश द्रोह की सोच है जिनकी रग रग में गद्दारी है
जिनको नमन तिरंगे को करने में, लज्जा आती है।
जिनकी टोपी दुश्मन के तलुओ में, अर्ज लगाती है॥
जो बेटों को, मां की छाती चीरने को उकसाते है।
खाते हैं भारत मां का पर गुण दुश्मन के गातें है।
श्रीनगर जिनको बाबर, नादिर की बपौती लगता है
भारत मां को गाली देकर सोता है और जगता है॥
कोई बताऔ मुझको, दिल्ली कॊ कैसी मजबूरी है।
इन शैतानों का जिन्दा क्या, रहना बहुत जरूरी है।
खून रगों मै नही बचा क्या, देश के औहदेदारों में।
फूल हाथ क्यूं लिये खडे है, गीदड बनें कतारों में।
वो गाली दें हम बात करें, इतने तो हम कमजोर नही।
मत भूलो हम महाराणा का खून है, कोई और नही॥
बहुत हुआ अब गद्दारों को, और रियायत नहीं नहीं।
जन गन गाना ही होगा, अब दूजी चाहत नहीं नहीं।
जीना है तो, जय हिन्द जय हिन्द कहना सीखो गद्दारों।
सच्चे बनकर अपने देश में, रहना सीखो गद्दारों॥
भारत का खाकर ही गर, भारत को आंख दिखाओगे।
कसम हिंद की कुत्तों की माफिक तुम मारे जाओगे॥
सतीश बंसल