कविता

चीखने लगा है धर्म…

चीखने लगा है धर्म, मानवता तार तार
श्रृद्धा ने ये कैसा रूप, धर लिया पाप का
गुरु कर रहे पाप, भक्तों मे संताप
नीचता भी शरमाई देख रूप आप का
भोग भोग जपने मे जिंदगी बिता दी,
और पापी,ढोंग करते रहे सदा ही जाप का
पाप का घडा है ये तो फूटना जरूर ही था
भरते ही फूट गया, ढोंगियों के पाप का॥

धर्म दुशाला ओढ़े , भेडिये विचर रहे
अपमान धर्म का, सरे बाजार हो रहा
नीचता के हाथ फंसा, बनकर कारोबार
धर्म बिलख कर ,जार जार रो रहा
हो रहे बलात्कार, त्रिया देह का व्यापार
बेटियों का शोषण भी, बार बार हो रहा
संतो की धरती पे, धर्म का चोला ओढे
रावणों के कर्मो का जय जयकार हो रहा॥

अब तो पधारो देव, रोद्र रूप धारो देव
धर्म ध्वजा का अपमान, यूं ना देखो तुम
दुष्ट हो रहे प्रचंड, आस्था है खंड खंड
धर्म को होते, अवमान यूं ना देखो तुम
बढने लगे है कंस, डूब रहे नेक वंश
सत्य का मिटते जहान, यूं ना देखो तुम
एक तुम से आस, भक्तों का विश्वास
होते भक्ति को निष्प्राण, यूं ना देखो तुम॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

2 thoughts on “चीखने लगा है धर्म…

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर रचना

    • सतीश बंसल

      शुक्रिया विभा जी…

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