गीत : कर्ज चुकाना मुश्किल है
फ़क़त तिरंगा फहराने से, फर्ज निभाना मुश्किल है
रक्त कणों की कुर्बानी से, कर्ज चुकाना मुश्किल है
गिरे जमीं पर हो निढाल, धरा समर्पित प्राण किया
माटी का मरहम लगाकर, वन्दे मातरम गान किया
चन्द सांसो के उस गीत की, तर्ज में गाना मुश्किल है
रक्त कणों की कुर्बानी से, कर्ज चुकाना मुश्किल है
छोड़ो, सरहद पे न जाओ, न रक्त का बलिदान करो
मगर जरूरत में किसी की, कुछ हिस्सा तो दान करो
नहीं स्वदेश से प्रेम जिन्हें, ये अर्ज सुनाना मुश्किल है
रक्त कणों की कुर्बानी से, कर्ज चुकाना मुश्किल हैै
बाट जोह रहीं जख्मी आँखें, सरहद के कंटीले तार से
मरहम बन आँखों में रहो, और दर्द मिटाओ प्यार से
हिम्मत करके देखो फिर न, बर्ज मिलाना मुश्किल है
रक्त कणों की कुर्बानी से, कर्ज चुकाना मुश्किल है
भ्रष्टाचार झुके कदमों में, न जुल्म किसी को सहने दो
न रहे दिलों में अहम कभी, अबला को सबला कहने दो
नामुमकिन तो नहीं मगर, ये मर्ज मिटाना मुश्किल है
रक्त कणों की कुर्बानी से, कर्ज चुकाना मुश्किल है
तिरंगे का सर न झुके कभी, हमेशा मान रहे सम्मान रहे
सारे देशों की फेहरिस्त में, सबसे आगे हिन्दुस्तान रहे
सबने तो ये स्वीकार किया, बस दर्ज कराना मुश्किल है
रक्त कणों की कुर्बानी से, कर्ज चुकाना मुश्किल है