चिट्ठी
चिट्ठी
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तू कवि मैं कविता तोरी
लिखो लिखो कागज है कोरी
माथे बिंदी बिजुरी सी चमके
माँग सजे तेरा नाम सिंदूरी
छनके पायल खनके चूड़ी
कहे जिया की.बात अधूरी
पलक बिछाए करे प्रतीक्षा
कजरारे से नयना मोरी
मैं ही लिखती हूँ करजोरी
समझो पिया मेरी मजबूरी
चिट्ठी पढ़ते ही आना तुम
वर्ना करूंगी मैं बलजोरी
नहीं चलेगा कोई बहाना
नहीं समझूंगी कोई मजबूरी
छोड़ो भी अब बात बनाना
मेरी बात है बहुत जरूरी
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©Copyright Kiran singh