विधाता छंद
कभी इकरार करते हो कभी इनकार करते हो ।
मुहब्बत को छिपा दिल में नही इजहार करते हो ।।
भुला भी तो नही पाते मुहब्बत यार करते हो ।
जुवां से कह नही पाते नयन तुम चार करते हो ।।
__________________________________
फिजाएँ गुनगुनाती है, हवा बन साज़ गाते है ।
खिली जो देख के कलियाँ, भ्रमर भी गीत गाते है ।।
तरन्नुम छेड़ कर जाती, हसीं वो शाम की बेला ।
जिया मचले पिया मेरा, लगा हैं श्रावणी मेला ।।
__________________________________
जलाकर प्यार का दीया, बुझाओ तुम नही ऐसे ।
लगा के गैर को सीने, सताओ तुम नही ऐसे ।।
छिपाकर था रखा दिल में, तुम्हारा प्यार हमने वो।
बयाँ कैसे करे इसको, सजाये संग सपने जो ।।