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विधाता छंद

कभी इकरार करते हो कभी इनकार करते हो ।
मुहब्बत को छिपा दिल में नही इजहार करते हो ।।
भुला भी तो नही पाते मुहब्बत यार करते हो ।
जुवां से कह नही पाते नयन तुम चार करते हो ।।
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फिजाएँ गुनगुनाती है, हवा बन साज़ गाते है ।
खिली जो देख के कलियाँ, भ्रमर भी गीत गाते है ।।
तरन्नुम छेड़ कर जाती, हसीं वो शाम की बेला ।
जिया मचले पिया मेरा, लगा हैं श्रावणी मेला ।।
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जलाकर प्यार का दीया, बुझाओ तुम नही ऐसे ।
लगा के गैर को सीने, सताओ तुम नही ऐसे ।।
छिपाकर था रखा दिल में, तुम्हारा प्यार हमने वो।
बयाँ कैसे करे इसको, सजाये संग सपने जो ।।

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*