लघुकथा

ह न त

 

समय बदलता ही है ……. पति के कलाई और उँगलियों पर दवाई मलती करमजली सोच रही थी …… अब हमेशा दर्द और झुनझुनी से उसके पति बहुत परेशान रहते हैं ….. एक समय ऐसा था कि उनके झापड़ से लोग डरते थे ….. चटाक हुआ कि नीला लाल हुआ वो जगह ….. अपने टूटी कान की बाली व कान से बहते पानी और फूटते फूटती बची आँखें कहाँ भूल पाई है आज तक करमजली

ह न त

  • भूलना ही आसान कहाँ होता है ……
  • यादों से धूल झड़ना मुश्किल कहाँ होता है ……
  • ह न त

 

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “ह न त

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत गेहराई है आप के इन लफ़्ज़ों में .

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      सुप्रभात भाई
      आभारी हूँ

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