देख रही है
रूपसि तेरा,
श्यामल-श्यामल,
कोमल-कोमल,
केश-पाश,
लहराता है,
तेरे वक्ष पर।
सजल अंग,
खुली अलकों से,
तिरछी नजर के छोरों में,
तेरा उज्ज्वल हास्।
पुलकित कर-मन को,
शीतल मुस्कान लिए,
अंकित कर ,
चंचलता मन में लिए।
आँखों के कोरों से,
देख रही है!!!
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रमेश कुमार सिंह
२२-०७-२०१५