यादों का तकिया
बचपन में जब
कोई खिलौना टूटा
जब कोई मनचाही
फ्रॉक या गुड़िया नहीं मिली
सखी सहेली से नोक झोँक
माँ की डांट डपट
बड़े होते होते
दर्द भी बड़े हो गए
लोगों के तीखे तेवर
रोक टोक की आनाकानी
शादी का ज़ोर आठों पहर
देखना दिखाना सजावट
के सामान की तरह
मन की आत्मिक पीड़ा
ख़ामोशी से बहते आंसू
फिर शादी
नया घर नया परिवार
अपनों से दूर
नए रिश्तों की जिम्मेदारी
एक दिन फिर माँ बनने का सुख
हर्ष दर्द आंसू का
बेमोल संगम
कितना कुछ सहा है इस
‘यादों के तकिये’
ने कितने दिन कितनी रातें
खामोश सोखे हैं आंसू
और सहा है हर दर्द हमारा।।