सभ्य लोग
मेरे आस-पास बड़े सभ्य लोग रहते हैं.
जो-देश के उत्थान-जंग में कभी नहीं कूदते,
जो किसी के चिरे पर कभी नहीं ………
कर्तव्य के लिए जागरूक ना सही,लेकिन
भाई का हिस्सा हड़पने से नहीं चूकते.
भाई कि छोडिये साहब,
माँ-बाप कि भावनाओं को ठेस लगाने से ही नहीं,
अनाधिकृत पाने के लिए,
किसी का गला रेंतने से भी नहीं चूकते.
संस्कार कि बात उन्हें बहती नहीं,
कुत्सित-विचार,पाश्चात्य-सभ्यता पर नहीं थूकते.
झूट के आवरण से सजे-धजे……
मेरे आस-पास बड़े ही सभ्य लोग रहते हैं.
— पूर्णिमा शर्मा
समसामयिक रचना |
आभार शशि शर्मा “ख़ुशी ” जी