“पिरामिड “
(1)
रे
मन
तुमकों
समझ ना
आये अब भी
तो समझ दार
ना समझ हों गया
(2)
आ
अब
लौट आ
आ मत जा
साथ निभा री
जी वन दर्शन
नाराज कराये क्या
(3)
हूँ
मै भी
आदमी
अनजाना
चेहरा लिए
दिखाऊँ किसकों
वों आदमी तो मिले
(4)
ओ
नैना
कजरा
कजरारी
झूले सावन
बर से बद रा
घनघोर घटा री
महातम मिश्र
वाह सर
सादर धन्यवाद श्री वैभव दुबे जी, आप पटल पर आये, बहुत बहुत आभार श्रीमन जी, आप का दिन मंगलमय हों…….