कविता

“पिरामिड “

(1)
रे
मन
तुमकों
समझ ना
आये अब भी
तो समझ दार
ना समझ हों गया
(2)

अब
लौट आ
आ मत जा
साथ निभा री
जी वन दर्शन
नाराज कराये क्या
(3)
हूँ
मै भी
आदमी
अनजाना
चेहरा लिए
दिखाऊँ किसकों
वों आदमी तो मिले
(4)

नैना
कजरा
कजरारी
झूले सावन
बर से बद रा
घनघोर घटा री

महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

2 thoughts on ““पिरामिड “

  • वैभव दुबे "विशेष"

    वाह सर

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद श्री वैभव दुबे जी, आप पटल पर आये, बहुत बहुत आभार श्रीमन जी, आप का दिन मंगलमय हों…….

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