कविता

जिन्दगी, पर तू ना मिली…

टूटती जुडती उम्मीदें
बनते बिगते रिश्ते
आती जाती दौलत
मान सम्मान की फिक्र
बीत जाती है पूरी जिन्दगी
साधने में, इन चंद बातों को
पता ही नहीं चला
कब सुबहा हुई, कब शाम ढली
पर तू ना मिली
ऐ जिन्दगी, पर तू ना मिली….

कब बचपन गया,कब तरुणाई
कब जवान चेहरे पर
झुर्रियां उभर आई
पता ही नही चला
कब बीत गई, आधी सदी
पर तू ना मिली
ऐ जिन्दगी, पर तू ना मिली….

बांध के रखा हौसलों का जहां
जगा कर रखा, उम्मीद का दिया
मन्नतें मांगी, पूजा पाठ किया
कभी हर की पौडी
तो कभी संगम घाट गया
दौडता रहा तेरी तलाश में
यूं ही उम्र भर
पर तू ना मिली
ऐ जिन्दगी, पर तू ना मिली….

और मिलती भी कैसे
जहां हम तलाशतें हैं
वहां तू होती नहीं
और जहां तू होती है
वहां हम देखते नही
क्योंकि हमारी नजरें तो देखती हैं
हमेशा बडा, ढूढती है ऊंचा मुकाम
और तू
मुस्कुराती रहती है
किसी गरीब के झोपडे मैं
हम ढूंढते है तुम्हें
बडे बडे आयोजनों में
आलीशान पार्टियों मे
और तूं उडेल देती है
अपना पूरा सुख
एक सावन के एक गीत में
ढोल की कुछ थापों में
और फिर हम कहते रह जाते हैं
ऐ जिन्दगी, तू ना मिली….

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

4 thoughts on “जिन्दगी, पर तू ना मिली…

  • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

    सच ही तो है हम उसे वहाँ ढूंढ रहे होते हैं जहाँ वह होती ही नही | सुंदर तलाश |

    • सतीश बंसल

      बहुत आभार शशी जी..

  • वैभव दुबे "विशेष"

    और मिलती भी कैसे
    जहां हम तलाशतें हैं
    वहां तू होती नहीं
    और जहां तू होती है
    वहां हम देखते नही

    बहुत सुंदर पंक्तियाँ

    • सतीश बंसल

      शुक्रिया वैभव जी…

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