आत्मकथा

आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 43)

कुल्लू-मनाली भ्रमण (जारी..)

दूसरे दिन हम मनाली के स्थानीय दर्शनीय स्थलों को देखने गये। मुख्य रूप से हिडिम्बा देवी का मंदिर देखा। अच्छा लगा। यह भीम की पत्नी हिडिम्बा की याद में बनाया गया है, जिसको देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है। वहाँ से हमें मनु महाराज के मन्दिर में जाना था, जो काफी ऊपर है। बाकी लोग वहाँ तक चढ़ना नहीं चाहते थे, इसलिए मैं अकेला ही गया। मनु महाराज की कर्मस्थली होने के कारण ही यह शहर मनाली कहलाता है। मन्दिर बहुत ऊँचाई पर है, इसलिए वहाँ बहुत कम लोग जाते हैं। वहाँ लगभग 80 साल की एक बुढ़िया बैठी थी। वह मुझसे पूछने लगी (इशारे से) कि तुम्हारी पत्नी कहाँ है? मैंने कहा कि उसे चढ़ाई चढ़ने में परेशानी होती है, इसलिए वह नीचे एक पुलिया पर बैठी है। वह समझ गयी कि मेरी पत्नी का वजन अधिक है। मैंने उसकी अनुमति लेकर उसका एक फोटो खींचा और उसे 10 का एक नोट भेंट किया। उसने मुझे बहुत आशीर्वाद दिये। थोड़ी देर बाद मैं लौट आया। कुछ लोग मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे और शेष लोग एक बाजार में चले गये थे।

वह बाजार या माॅल अच्छा खासा पिकनिक स्थल जैसा है। खाने-पीने की दुकानें भी हैं तथा मनोरंजन के अन्य साधन भी हैं। हमें खरीदारी तो क्या करनी थी, बस देख आये। पास में ही व्यास नदी बहती है। वहाँ कुछ लोग नदी के बीच में रस्सी पर झुलाते थे। मोलभाव करके हमने रेट तय किये। औरतों ने डर के कारण झूलने से मना कर दिया। केवल डाॅल, नवी, मोना और मैं झूले थे। बाकी सब तो डर के मारे रोने को आ गये थे, लेकिन मैं मजे में देर तक झूला। फिर जब मेरे हाथों में दर्द होने लगा, तो मैं भी उतर आया। मोना ने मेरे झूलने का वीडियो भी बना लिया था, जिसे देखकर मुझे आज भी आनन्द आता है।

दोपहर के भोजन के बाद शाम को हम सरकारी बाग में घूमने गये, जिसमें मामूली टिकट लगती है। यह बाग अच्छा है। हमने वहाँ हिमाचली पोशाकों में बच्चों के और महिलाओं के फोटो खिंचवाये। वहाँ कई साधारण झूले भी लगे हुए हैं। हम उन पर खूब झूले। फिर रात का भोजन करके जल्दी ही सो गये, क्योंकि अगले दिन हमें रोहतांग दर्रा देखने जाना था।

अगले दिन हम जल्दी ही रोहतांग दर्रे के लिए निकले। पहले हमने रास्ते के शुरू में ही वहाँ के लिए विशेष सूट और बूट किराये पर लिये। उनका किराया ज्यादा था, पर मजबूरी थी। रोहतांग दर्रा वैसे तो सामने ही दिखाई देता है, लेकिन सड़क मार्ग से 40 किमी है। मैंने सोचा कि 2 या 3 घंटे में पहुँच जायेंगे। लेकिन रास्ता बहुत सँकरा था और ढेर सारी गाड़ियाँ एक साथ जा रही थीं। जैसे-जैसे हमारी टैक्सी ऊपर चढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे ठंड भी बढ़ती जा रही थी। इसकी तुलना में नीचे मनाली में ठंड बहुत मामूली थी। रास्ता बहुत सुहावना था। वहाँ से बर्फ से ढकी चोटियाँ भी साफ दिखाई देती थीं, जो मैंने पहले कभी नहीं देखी थीं। कभी-कभी झरने भी दिखाई देते थे, जो दूर से दूध की तरह चमकते थे।

हर एक-आध घंटे में एक छोटा सा गाँव मिलता था। बीच-बीच में रेस्टोरेंट भी मिल जाते हैं। सारे रास्ते में भारतीय सीमा सड़क संगठन के लोग मिलते थे, जो उन सड़कों को या तो साफ कर रहे थे या ठीक कर रहे थे। लगभग 2 घंटे चलने के बाद हमारी टैक्सी अचानक रुक गयी या रेंगने लगी। हमने कारण पूछा तो पता लगा कि आगे एक मिनी ट्रक पलट गया है, जिससे सड़क बन्द हो गयी है। केवल एक गाड़ी निकलने का रास्ता बचा है, जो बहुत खतरनाक भी है। वहीं से एक-एक इंच करके गाड़ियाँ निकाली जा रही थीं। काफी देर बाद हमारी टैक्सी भी इसी तरह निकली। हम सब नीचे उतर आये थे और केवल ड्राइवर ने ही गाड़ी निकाली थी।

जब वह जगह निकल गयी, तो गाड़ी आगे तेजी से चली, लेकिन ऊपर सड़क और अधिक सँकरी हो जाती है और टूटी हुई भी है। इसलिए टैक्सी धीरे-धीरे रेंग रही थी। करीब 4 घंटे चलने के बाद हम गढ़ी नामक स्थान पर पहुँचे, जहाँ खुला समतल मैदान सा है और वहाँ काफी दुकानें भी बनी हुई हैं। लोग वहाँ थकान मिटाने के बाद ही आगे बढ़ते हैं। हमने वहाँ चाय पी और अपने साथ लायी हुई नमकीन-बिस्कुट आदि का नाश्ता किया।

पूछने पर पता चला कि रोहतांग दर्रा वहाँ से केवल 14 किमी है। मैंने अंदाज लगाया कि अब केवल एक घंटा और लगेगा, लेकिन उन्हीं लोगों ने बताया कि रास्ता कम से कम 2 घंटे का है। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ, क्योंकि दर्रा बिल्कुल सिर पर सामने ही दिखाई दे रहा था। लेकिन वहाँ तक पहुँचने में वास्तव में 2 घंटे से भी अधिक समय लग गया।

जब तक हम रोहतांग दर्रे पर पहुँचे, तब तक बहुत थक गये थे। वहाँ चारों ओर बर्फ ही बर्फ थी। ऐसी बर्फ की मैंने कल्पना भी नहीं की थी। सिर पर बहुत तेज धूप भी थी, जिसका लगता था कि बर्फ पर कोई असर नहीं हो रहा है। हालांकि उस समय बर्फ पड़ नहीं रही थी। वास्तव में गर्मियों में बर्फ वहाँ केवल रात को पड़ती है और दिन में खूब धूप निकलती है, जिससे थोड़ी बर्फ पिघल जाती है। उसी से झरने बनते हैं। वहाँ बर्फ की चट्टानें भी थीं, जो दूर से नमक की चट्टानों जैसी दिखायी देती थीं। पास जाकर ही पता चलता था कि यह ठोस बर्फ है।

वहाँ काफी खुला स्थान था, जहाँ रेत की तरह बर्फ ही बर्फ पड़ी हुई थी। उसी पर कुछ लोगों ने फिसलने का खेल बना लिया था और वे फीस लेकर फिसलवा रहे थे। हममें से कुछ लोग फिसले भी पर मजा नहीं आया। फिर हम बर्फ की गाड़ी में बैठकर दर्रे में कुछ दूर तक गये। श्रीमती जी की तबियत अत्यधिक ठंड और आक्सीजन की कमी के कारण खराब हो रही थी। इसलिए हम चिन्तित थे। पर किसी तरह सँभाल लिया। हमने वहाँ खाना नहीं खाया, क्योंकि डर था कि उल्टी न हो जाये। वैसे भी किसी को भूख नहीं थी।

हमने एक छोटी सी पहाड़ी पर फिसलने का स्थान बना लिया और वहाँ खूब फिसले। बच्चे बर्फ के गोले बना-बनाकर एक दूसरे पर फेंक रहे थे। हमने लगभग 2 घंटे बर्फ में खूब मस्ती की। जब थक गये तो वहाँ से चले। वहाँ एक जगह एक धारा निकल रही थी, जिसके बारे में बताया गया कि व्यास नदी यहीं से शुरू होती है।

लगभग ढाई बजे हम वहाँ से चले। हमने सोचा था कि उतरने में कम समय लगेगा। वैसा हुआ भी, परन्तु नीचे आने तक कई लोगों को उल्टी हो गयी। लगभग सभी की हालत खराब थी। मैं स्वयं को सबसे स्वस्थ मानता हूँ, पर नीचे आने पर मुझे भी दो बार उल्टी हो गयी। तब चैन मिला। पहले हम एक घाटी में गये, जो व्यास नदी के दूसरी ओर शहर से करीब 6 किमी है। वहाँ ग्लाइंडिग हो रही थी। परन्तु हममें से किसी ने भी ग्लाइडिंग नहीं की, क्योंकि सबकी तबियत खराब थी। किसी तरह आधा घंटा वहाँ गुजारा, फिर अपने कमरे में आकर सो गये। लगभग 2-3 घंटे सोने के बाद हम सब स्वस्थ हुए। तब खाना खाने गये और फिर आकर सो गये।

रोहतांग दर्रे तक आने-जाने में हालांकि हम सबको ही थोड़ा-थोड़ा कष्ट हुआ, लेकिन आनन्द बहुत आया।

मनाली में चैथे दिन हमारा कार्यक्रम बचे हुए स्थानीय स्थल देखकर कुल्लू होते हुए मणिकर्ण जाने का था। पहले हम वशिष्ठ कुंड गये। वहाँ गर्म पानी का कुंड है। कहा जाता है कि वशिष्ठ जी ने लक्ष्मण जी के लिए वह गर्म पानी का कुंड बनाया था और वशिष्ठ जी का आशीर्वाद है कि जो यहाँ स्नान करेगा, उसकी सारी थकान मिट जायेगी। कुंड का पानी बहुत गर्म था, इसलिए उसमें कूदकर स्नान करने की हिम्मत नहीं हुई। उसमें से एक धार नल की तरह निकलती है। मैंने उसी से स्नान कर लिया। वह भी काफी गर्म थी।

फिर हमने कुल्लू के रास्ते में निकोलाई रोयरिख का आश्रम देखा। वे एक महान् चित्रकार थे। उनका आश्रम काफी ऊँचाई पर है। वहाँ से सारी कुल्लू घाटी का दृश्य दिखाई देता है, जो बहुत मनोरम लगता है।

वहाँ से निकलकर हम कुल्लू के रास्ते में वैष्णोदेवी के मंदिर पर आये। वह अच्छा मंदिर है। वहीं लंगर में हमने भोजन किया। उसके सामने ही व्यास नदी है, थोड़ी देर उसमें भीतर घुसकर पत्थरों पर बैठे। बहुत अच्छा लग रहा था।

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

8 thoughts on “आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 43)

  • Man Mohan Kumar Arya

    Namaste avam dhanyawad Shri Vijay ji. Pura vivran achcha laga. Sadar.

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम मान्यवर ! आभारी हूँ।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , हम ने भी सैर कर ली ,अब मुझे मालूम हुआ कि १९६७ में हम ने किया मिस कर दिया लेकिन किया करते श्री मति की तबीअत खराब होने से यह बना बनाया प्रोग्राम मिस कर दिया था .

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, भाई साहब. आपने मनाली और रोहतांग की यात्रा नहीं की यह अच्छा ही हुआ,क्योंकि वहां जाकर भाभी जी की तबियत और ज्यादा ख़राब हो सकती थी. वैसे मनाली तक कोई चिंता की बात नहीं है.

  • वैभव दुबे "विशेष"

    वाह्ह साहब मनाली की यात्रा करा दी..
    बहुत खूब

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, वैभव जी.

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    मनाली बहुत सुंदर जगह है
    आप लेखन से अच्छा चित्र बनाते हैं

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार, बहिन जी. मुझसे घुमा फिराकर लिखना नहीं आता. सीधे सपाट शब्दों में लिखता हूँ इसलिए सबको रोचक लगता है.

Comments are closed.