अनमोल प्यार ….
वो बचपन की यादें, वही दुलार ले के आजा।
इस राखी अपना अनमोल प्यार ले के आजा॥
रेशम की डोरी में, पिरो कर आशीष अपनें
दुवाओं का अपनी बेमोल, संसार ले के आजा….
इस राखी अपना अनमोल प्यार ले के आजा…..
मुस्काते चेहरे पर, रिश्तों की चमक लिये।
परम्परा का और रीती का, श्रंगार लेके आजा….
इस राखी अपना अनमोल प्यार ले के आजा…..
चंदन के तिलक और दीप की ज्योति से।
सुसज्जित आरती की बहार ले के आजा…
इस राखी अपना अनमोल प्यार ले के आजा…..
बांधकर अपनी दुवा का, बंधन मेरी कलाई पर।
भाई की सुरक्षा का, उपहार ले के आजा…
इस राखी अपना अनमोल प्यार ले के आजा….
सांस्कृतिक मूल्यों की विरासत में लपेटकर।
भाई बहन के पवित्र रिश्ते का सार ले के आजा…
इस राखी अपना अनमोल प्यार ले के आजा….
सतीश बंसल
पावन भाव लिये, सुंदर रचना
आफका बहुत शुक्रिया शशी जी
..
सांस्कृतिक मूल्यों की विरासत में लपेटकर।
भाई बहन के पवित्र रिश्ते का सार ले के आजा…
बेहतरीन रचना…
शुक्रिया वैभव जी…
बहुत सुंदर कविता !
बहुत आभार विजय जी…
आपका उत्साहवर्धन और लिखने को प्रेरित करता है..