आत्मकथा

आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 45)

बांगिया जी का स्थानांतरण

हरिद्वार शिविर में जाने से कुछ दिन पहले हमारे बैंक में बड़े पैमाने पर उच्च अधिकारियों के स्थानांतरण हो रहे थे। लगभग हर दूसरे-तीसरे दिन एक सूची आ जाती थी, जिनमें स्केल 4 और 5 के उन अधिकारियों के नाम होते थे, जिनका स्थानांतरण किया जाता था। जब भी ऐसी सूची आती थी, बांगिया जी मुझसे यह कहना नहीं भूलते थे कि अगली सूची में किसी का भी नाम हो सकता है। दूसरे शब्दों में, वे मुझे यह कहना चाहते थे कि मैं अपने स्थानांतरण के लिए तैयार रहूँ। लेकिन ईश्वर की लीला ऐसी हुई कि अगली ही सूची में उनका अपना नाम आ गया, जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। हरिद्वार शिविर में पहुँचने के अगले दिन ही मुझे समाचार मिल गया था कि बांगिया जी का स्थानांतरण कोलकाता हो गया है। यह जानकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई, क्योंकि मैं अब पूरी तरह तनावमुक्त रह सकता था। मैंने वहीं से बांगिया जी को उनके स्थानांतरण की ‘बधाई’ दे डाली। हालांकि उन्होंने जबाब नहीं दिया, लेकिन वे जान गये कि मुझे भी इसकी खबर मिल चुकी है।

शिविर के बाद जब तक मैं पंचकूला पहुँचा, तब तक बांगिया जी की विदाई भी हो चुकी थी। एक तरह से यह अच्छा ही हुआ, क्योंकि यदि मैं विदाई समारोह में उपस्थित होता, तो जाने क्या बोल जाता। बांगिया जी को सेवा शाखा, कोलकाता में लगाया गया था। संयोग से उनसे पहले हमारे संस्थान के कक्कड़ साहब को भी उसी शाखा में भेजा गया था और तब बांगिया जी ने टिप्पणी की थी कि “अब ‘साँड़ जी’ को पता चलेगा।” ‘साँड़ जी’ को क्या पता चला यह तो मुझे मालूम नहीं, लेकिन बांगिया जी को जाते ही पता चल गया। हुआ यह कि वहाँ के लोगों ने बांगियाजी का बिल्कुल स्वागत नहीं किया और उन्हें एक कोने में उपेक्षित सा बैठा दिया। ऐसी स्थिति में रहने पर शीघ्र ही वे बीमार पड़ गये। बीमार तो वे पहले से ही थे, लेकिन कोलकाता जाने के बाद तो एकदम ही बीमार हो गये। वे लम्बे समय तक बीमारी के कारण अवकाश पर रहे। उनका लीवर और शायद गुर्दे भी खराब हो गये थे। फिलहाल वे आॅफिस तो आ रहे हैं, लेकिन पहिएदार कुर्सी पर बैठे रहते हैं। बिल्कुल चल-फिर नहीं पाते। ईश्वर की लीला बड़ी विचित्र है।

नये साहब का शुभागमन

बांगिया जी के जाने के लगभग एक सप्ताह बाद ही हमारे नये सहायक महाप्रबंधक का आगमन हुआ। वे थे श्री एस.वी.एल.एन. नागेश्वर राव। जैसा कि नाम से स्पष्ट है वे मूलतः आंध्रप्रदेश के रहने वाले हैं। उनका स्वभाव बहुत अच्छा है और इतने भले आदमी हैं कि कभी किसी का बुरा सोच ही नहीं सकते। उनके आने से संस्थान का वातावरण एकदम तनावमुक्त हो गया, जो बांगिया जी के कारण हमेशा तनावग्रस्त रहता था। मेरे साथ तो श्री राव का व्यवहार बहुत ही मित्रतापूर्ण और सहयोगात्मक था। उनके एक पुत्री है कु. अमृता राव। वह आंध्रप्रदेश बोर्ड की सीनियर सेकेंडरी परीक्षा में प्रदेश भर में प्रथम आयी थी। उसने एम.बी.बी.एस. किया हुआ था और एम.डी. में उसका प्रवेश चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट चिकित्सा संस्थान में हो गया था। इसलिए उसे चंडीगढ़ में रहना था। शायद इसी कारण राव साहब ने अपनी पोस्टिंग पंचकूला में करा ली थी।

प्रारम्भ में राव साहब को पंचकूला में ही एक मकान किराये पर मिला। वह काफी सुविधाजनक था, लेकिन एक समस्या थी कि डा. अमृता को पी.जी.आई. जाने में बहुत समय लगता था, हालांकि वह कार से आती जाती थी और राव साहब का प्राइवेट ड्राइवर उसको ले जाता-लाता था। कभी-कभी ड्यूटी का समय बदलते रहने के कारण और अधिक कष्ट होता था, इसलिए दो-तीन महीने बाद ही राव साहब ने चंडीगढ़ सेक्टर 8 में अधिक किराये पर एक मकान ले लिया। इससे उनको काफी आराम हो गया। हालांकि उनके ड्राइवर को रोज पंचकूला से चंडीगढ़ जाना पड़ता था।

राव साहब ने अपनी पुत्री को बहुत अच्छे संस्कार दिये थे। वे अपने ड्राइवर को भी श्यामू भैया कहकर सम्मान देती थीं और उसकी सुविधा-असुविधा का भी ध्यान रखती थीं। बाद में मुझे ज्ञात हुआ कि राव साहब का बैकग्राउंड संघ परिवार का है अर्थात् प्रारम्भ में वे भी स्वयंसेवक थे। इसी कारण उनका व्यवहार इतना उच्चकोटि का है। संस्थान को चलाने में वे सदा मेरी सलाह लिया करते थे और हम दोनों मिलकर ही कोई निर्णय करते थे।

श्रीमतीजी का आॅपरेशन

अगस्त 2009 में अचानक श्रीमतीजी के सिर में बायीं ओर एक विचित्र प्रकार का दर्द होने लगा। उनकी आँख की हलचल भी बन्द हो गयी। हम समझ नहीं पाये कि क्या कारण है। उनको दिखाने के लिए हम पंचकूला के अल केमिस्ट अस्पताल गये। वहाँ एक डा. आहलूवालिया से सलाह ली। उन्होंने इसका कारण किसी नस में सूजन को बताया और तत्काल सीटी-स्कैन कराने की सलाह दी। हमने उसी दिन पंचकूला में ही एक अच्छी लैब में सीटी-स्कैन कराया और अगले दिन उसकी रिपोर्ट लेकर डा. आहलूवालिया से मिले।

उन्होंने रिपोर्ट देखकर बताया कि एक नस, जो आँख से सम्बंधित है, उसमें एक बबूला बन गया है, जिसका व्यास 16 मिलीमीटर अर्थात् डेढ़ सेमी से भी अधिक है। इसका केवल एक इलाज है काॅइलिंग कराना, जो चंडीगढ़ में किसी अस्पताल में नहीं होती और दिल्ली में केवल 3-4 बड़े अस्पतालों में होती है। उन्होंने हमें तत्काल गंगाराम अस्पताल जाने की सलाह दी और बताया कि वहाँ डा. शाकिर हुसैन एशिया में इस प्रकार के आॅपरेशन के सबसे बड़े विशेषज्ञ हैं। उन्होंने स्वयं डा. हुसैन से बात की और हमें सीधे उनके पास ही जाने की राय दी। डा. आहलूवालिया ने हमें बहुत सही सलाह सही समय पर दी। इसके लिए हम उनके बहुत आभारी हैं।

अगले ही दिन हमने दिल्ली शताब्दी पकड़ ली और डा. शाकिर हुसैन से मिले। उन्होंने हमें तत्काल एंजियोग्राफी और एम.आर.आई. कराने की सलाह दी और उनकी रिपोर्ट आदि देखकर कहा कि यह आॅपरेशन एक सप्ताह के अन्दर करा लो। वे स्वयं समय देने को तैयार थे। उन्होंने खर्च लगभग 5 लाख बताया। हमने उनको धन्यवाद दिया। आगरा से श्रीमती जी के भाई और मेरे साढ़ू भी आ गये थे। वे श्रीमतीजी को अपने साथ आगरा ले गये और मैं रुपयों की व्यवस्था करने चंडीगढ़ चला गया।

अब मुझे 5 लाख की व्यवस्था करनी थी। मैं अपने ओवरड्राफ्ट खाते से 3 लाख निकाल सकता था, क्योंकि उन दिनों वह लगभग खाली था। मेरे पास उस समय 2 लाख के शेयर थे। मैं उनको बेचकर शेष रुपयों की व्यवस्था भी कर सकता था, हालांकि शेयर तत्काल बेचने में मुझे 30-40 हजार का घाटा पड़ता। लेकिन सौभाग्य से हमारे मकान मालिक श्री ज्ञान चन्द वर्मा मेरी सहायता को आये। वे कनाडा में रहते हैं और बीच-बीच में भारत आते रहते हैं। उस समय वे कनाडा में ही थे। उनके प्रतिनिधि श्री पंकज सैनी, जिन्होंने हमें मकान किराये पर उठाया था, पास में ही रहते हैं। जब उनके माध्यम से वर्मा अंकल जी को पता चला कि हमारी श्रीमती जी का आॅपरेशन होने वाला है, जिसमें 5 लाख का खर्च है, तो उन्होंने कहा कि मैं 2 लाख तक उधार दे सकता हूँ। मैंने प्रसन्नता से स्वीकार कर लिया और वायदा किया कि जैसे ही मुझे बैंक से बिल का भुगतान मिलेगा, मैं सबसे पहले आपके रुपये लौटाऊँगा।

इसके साथ ही मेरे छोटे भाई साहब, छोटे साढ़ू और बड़े बहनोई ने भी बिना माँगे मुझे रुपये उधार देकर सहायता की, जिससे मैंने 5 लाख की व्यवस्था सरलता से कर ली। मैंने अपने ओवरड्राफ्ट में 2 लाख की गुंजायश छोड़ दी, ताकि यदि अचानक कोई आवश्यकता पड़ जाये, तो उतनी राशि तत्काल निकाली जा सके।

मैं तो चंडीगढ़ में धन की व्यवस्था कर रहा था। इधर आगरा से मेरे छोटे साढ़ू श्री विजय जिन्दल ने नौएडा के फोर्टिस अस्पताल में इसी प्रकार के आॅपरेशन करने वाले एक डाक्टर डा. ए.के. सिंह से बात की। उन्होंने खर्च का अनुमान 3 लाख बताया। हमने सोचा कि यदि यह काम 3 लाख में हो जाता है, तो ज्यादा अच्छा रहेगा। यह सोचकर हम पहले फोर्टिस गये। वहाँ हमने एक डाक्टर से सलाह ली। वह डाक्टर शायद अनाड़ी था, रिपोर्ट देखकर कहने लगा कि रोग उसकी समझ में नहीं आ रहा है। फिर उसने अनुमान भी 5 लाख से 7 लाख तक का बताया। हम समझ गये कि ये अस्पताल केवल ‘ऊँची दूकान फीका पकवान’ का नमूना है। इसलिए हमने वहाँ आॅपरेशन कराने का विचार एकदम छोड़ दिया और सीधे गंगाराम अस्पताल गये।

फोर्टिस अस्पताल वास्तव में मरीजों को जी भरकर लूटता है और फिर भी ठीक नहीं कर पाता। मेरे मित्र श्री कुलवन्त सिंह गुरु ने मुझे एक उदाहरण बताया था कि किस प्रकार उनके एक परिचित का आॅपरेशन दो बार फोर्टिस में किया गया, जिसमें 12 लाख खर्च हुए और फिर भी वह ठीक नहीं हुआ। बाद में मुझे ऐसे और भी उदाहरण मिले। इसलिए मुझे प्रसन्नता है कि मैं वहाँ जाने से बच गया, नहीं तो मेरी गाढ़ी कमाई तो खर्च होती ही, सम्भव था कि मैं अपनी श्रीमतीजी को भी खो देता।

गंगाराम अस्पताल में हम पुनः डा. शाकिर हुसैन से मिले। वे श्रीमती जी की हालत नाजुक देखकर अगले ही दिन आॅपरेशन करने को तैयार हो गये। हमने उनका और भगवान का बहुत-बहुत शुक्रिया अदा किया। अगले दिन अर्थात् 19 अगस्त 2009 को श्रीमती जी का आॅपरेशन (काॅइलिंग) हुआ। इसमें जाँघ में होकर काॅइलें इस प्रकार डाली जाती हैं कि वे दिमाग की उसी नस में पहुँचकर बबूले के अन्दर उस तरह लिपट जाती हैं, जैसे ऊन का गोला लिपटता है। यह बहुत ही नाजुक आॅपरेशन होता है। सौभाग्य से डा. हुसैन ने सफलतापूर्वक यह कर दिखाया। इसमें 3-4 घंटे का समय लग गया।

आॅपरेशन वाले दिन हमारे कई परिवारी और रिश्तेदार वहाँ आ गये थे। मेरे आगरा वाले दोनों भाई-भाभी, दोनों बहनें और बहनोई, मँझले और छोटे साढ़ू और श्रीमती जी की दो बहनें और भाई सब आ गये थे। उनके आने से हमें बहुत हिम्मत बँधी। मेरे खानदान के एक चचेरे भाई श्री उमेश चन्द्र अग्रवाल, दिल्ली में ही रहते हैं। वे रिश्ते में मेरे साढ़ू भी लगते हैं। उनके पहाड़गंज में तीन होटल हैं। वे भी आ गये थे। उन्होंने मुझसे कहा कि खर्च के लिए मैं 20 लाख तक की व्यवस्था तत्काल कर सकता हूँ। 3 लाख तो वे साथ लेकर आये थे। लेकिन मैंने बताया कि खर्च की व्यवस्था हो गयी है और अगर आगे आवश्यकता पड़ेगी तो हम उनसे ही ले लेंगे।

सौभाग्य से सारा बिल केवल सवा चार लाख का आया। इतने रुपये मैंने तत्काल जमा कर दिये। कुछ नकद और कुछ ड्राफ्ट के रूप में। तीन दिन बाद श्रीमतीजी को छुट्टी मिल गयी और हम उन्हें आगरा ले गये। डाक्टर साहब ने उनको दो-तीन माह तक पूर्ण विश्राम की सलाह दी थी। मैं उनको इतने समय तक आगरा छोड़ने को तैयार था और सारे रिश्तेदार भी यही कह रहे थे। लेकिन श्रीमती जी नहीं मानीं। उन्हें बच्चों की पढ़ाई की चिन्ता अधिक थी। मजबूरी में हम उनको पंचकूला लेकर चले गये। साथ में उनकी माताजी (मेरी सास) भी गयीं।

यहाँ यह बताना आवश्यक है कि मेरे पुत्र दीपांक ने अपनी माँ के इलाज में बहुत भाग-दौड़ की थी। प्रारम्भ से ही डाक्टरों से बातचीत करना, सारे टैस्ट कराना, रिपोर्ट लाना, दवायें लाना, अपनी माँ को दवायें देना और हर चीज की व्यवस्था दीपांक ने ही की। मैंने तो केवल धन की व्यवस्था की थी। दीपांक ने इंटरनेट को खँगालकर यह भी पता लगा लिया कि यह आॅपरेशन कैसा और किस प्रकार होता है। उसने इस तरह के आॅपरेशन का एक वीडियो भी डाउनलोड कर डाला। अपने इतने योग्य पुत्र पर किसको गर्व न होगा? मैं परमपिता को कोटि-कोटि धन्यवाद देता हूँ कि उसने मुझे इतनी योग्य सन्तानें दी।

आॅपरेशन के कुछ समय बाद ही श्रीमती जी स्वस्थ हो गयीं। घर के काम के लिए क्रमशः उनकी माँ, छोटी बहिन, भाभी और मेरी बहिन गीता लगभग एक-एक सप्ताह पंचकूला में रहीं। फिर श्रीमतीजी ने ही काम सँभाल लिया। मैं भी यथा सम्भव सहायता करता था।

डा. हुसैन ने हमें एक माह बाद आकर दिखाने को कहा था। इसलिए हम फिर दिल्ली गये। तब तक वे गंगाराम अस्पताल को छोड़कर मैक्स अस्पताल में आ गये थे। हम वहीं जाकर उनसे मिले। उन्होंने देखकर बताया कि सब ठीक है, कोई समस्या हो तो हमें बताना। उन्होंने हमें चंडीगढ़ के फोर्टिस अस्पताल के एक डाक्टर का नाम तथा नम्बर दिया और कहा कि यदि कोई समस्या पैदा हो जाये, तो पहले इनसे मिलें।
इसके लगभग 6 माह बाद हमने फोर्टिस में दिखाया। उन्होंने भी एमआरआई कराया और देखकर बताया कि कोई समस्या नहीं है, सब ठीक है।

बैंक से मुझे श्रीमती जी के मेडीकल बिल के दो-तिहाई भाग का भुगतान लगभग दो माह में मिल गया, जिससे मैंने पहले अपने मकान मालिक के रुपये दिये और रिश्तेदारों के रुपये भी लौटा दिये। मेडीकल बिल के शेष एक-तिहाई भाग का भुगतान मुझे कई महीने बाद मेडीक्लेम से मिला, जिससे मैंने अपना ओवरड्राफ्ट भी खत्म कर दिया।

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

8 thoughts on “आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 45)

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , पहले तो बांगिया जी के बारे में जाना .ऐसे लोग खुद दुखी रहते हैं और दूसरों को दुःख देते रहते हैं ,और आखिर किया हुआ ?दोस्त ,दोस्त न रहा ,पियार पियार ना रहा .
    बहन जी की सिहत के बारे में पड़ कर बहुत शौक सा लगा लेकिन ख़ुशी भी हुई कि आप सब की हिमत और कुर्बानी से बहन जी ठीक हो गए लेकिन एक बात का मुझे बहुत दुःख होता है कि गरीब किया करेगा ,जब इतने बड़े हस्पताल के बिल हों . दुसरे आप को बचों का बहुत सहयोग मिला और सभी रिश्तेदारों का भी ,यह जान कर बहुत अच्छा लगा . बहन जी की तरह मेरे तो बहुत ऑपरेशन हो चुक्के हैं और ऐसे में बच्चों का बहुत सहयोग मिला ,मेरा बेटा तो हस्पताल में ही मेरे कमरे में जब मैं बहुत बुरी हालत में था तो नर्सों को बुलाने की वजाए खुद मेरी बौटम साफ़ करता रहा जब कि मैं इतनी बुरी हालत में था कि बताना मुश्किल है . परिवार अच्छा हो तो दुःख भूल जाते हैं .

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार, भाई साहब. जब परिवार का सहयोग मिलता है तो व्यक्ति बड़े बड़े संकटों को झेल जाता है. मैं इस मामले में बहुत भाग्यशाली हूँ. मुझे अपने सभी परिवारियों, रिश्तेदारों और मित्रों का बहुत प्यार मिलता है. यह भी प्रभु की कृपा ही है. “जा पर कृपा राम की होई. ता पर कृपा करै सब कोई.”

      • मनमोहन कुमार आर्य

        धन्यवाद आदरणीय श्री विजय जी। … यह पंक्तियाँ अस्थान लिख दी गई है। क्षमा प्रार्थी हूँ।

  • मनमोहन कुमार आर्य

    बहिन जी की अस्वस्थता और उसके उपचार का वृतांत मार्मिक है। आप इसमें सफल हुए, इसमें डॉक्टर के साथ ईश्वर की कृपा भी सम्मिलत है। मनुष्य शरीर की क्लिष्टता व गहनता का ज्ञान ऐसे अवसर पर ही पता चलता है। ऐसी घटनाओं से योग्य डॉक्टर दूसरे भगवन सिद्ध होते हैं। आपने यह सब सहन किया है, इसे आपका आत्मबल ही कह सकते हैं। आज की क़िस्त में लेख में कहीं कहीं स्खलन आदि है। धन्यवाद।

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम, मान्यवर ! ऐसी भयंकर बीमारी से श्रीमती जी का ठीक हो जाना परम पिता की ही कृपा है और श्रेष्ठ डाक्टरों के समर्पण का भी इसमें योगदान है. जहाँ तक मेरे आत्मबल की बात है, ऐसी ही टिपण्णी अन्य कई लोगों ने की थी. पर जिसको प्रभु पर पूरा विश्वास होता है, उसमें ऐसा आत्मबल होना आश्चर्यजनक नहीं है.
      लेख में कहाँ कहाँ आपको त्रुटियाँ अनुभव हुईं, कृपया बताने का कष्ट करें, ताकि सुधार किया जा सके. आभारी रहूँगा.

      • मनमोहन कुमार आर्य

        धन्यवाद आदरणीय श्री विजय जी। आपकी पंक्तिया पढ़कर कर मुझे स्वामी दयानंद जी की यह पंक्तिया याद हो आई। उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश में ईश्वर की उपासना के अनेक लाभ बताते हुए अंत में कहा है कि इतना ही नहीं अपितु उपासना से आत्मा का बल इतना बढ़ता है कि पहाड़ के समान दुःख प्राप्त होने पर भी घबराता नहीं है (अर्थात उसको आसानी से सहन कर लेता है), क्या यह छोटी बात है? उनका स्वयं का जीवन भी इसका साक्षात उदहारण है। लेख में स्खलन के लिए मेरे कंप्यूटर पर उपलब्ध लेख की प्रति ईमेल कर रहा हूँ। हार्दिक धन्यवाद।

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    कठिन पल में अपनों का मिलना सौभाग्य की बात है
    अच्छा लगा कि आपके पास अपने हैं
    सब हमेशा सकुशल रहें

    • विजय कुमार सिंघल

      हार्दिक धन्यवाद, बहिन जी !

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