पद्य साहित्यमुक्तक/दोहा

दोहे !

 

 

विवेक को बनाओ जज, मन होगा रस्ते पर

सचाई के सांगत में, विवेक पहरेदार |

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साम-दाम-दण्ड व भेद, स्वार्थ-नीति हैं सब

स्वार्थी नेता सोचते, उनके दास हैं सब |

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नहीं धार्मिक यहाँ नर, हो गया साम्प्रदायिक

नफ़रत, हिंसा में विश्वास,विसरे आध्यात्मिक |

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कर्म से बढ़कर न धर्म, न आगे कोई तप

मानव बन जाते देव, पाते देव प्रताप |

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मानव की चाहत मोक्ष, नही छोड़ता मोह

कांचन, कामिनी और, लोभ बढ़ाते मोह |

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हिन्दू जपते राम नाम, ईशाई का गॉड

अनेक है नाम रब का, ईश्वर, अला, गॉड |

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लोगों के दिलों को मैं, छूना चाहता हूँ

धर्म मार्ग में भरोसा, करना चाहता हूँ |

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मानव जीवन में करे, जो अच्छा कर्म यहाँ

उसे मिले मोक्ष जग से, मिले प्रशंसा यहाँ |

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© कालीपद ‘प्रसाद’

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !

2 thoughts on “दोहे !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर दोहे

    • कालीपद प्रसाद

      धन्यवाद विभा रानी जी

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