समुन्दर की लहरों सी…
समुन्दर की लहरों सी, शोखी तुम्हारी
नदी जैसी अल्हड, मचलती जवानी।
रति छुप रही है, दरीचों के पीछे
हुई स्वर्ग की, अप्सरा पानी पानी॥
तेरा रूप देखे, पिघल जाये शम्मा
तुझे देख जल जल के जल जाये शम्मा।
झुकाने लगें है नजर ये नजारें
बहारे करें झूम कर ता ता थम्मा॥
सुनाती है हर सब, तुम्हारी कहानी….
हुई स्वर्ग की, अप्सरा पानी पानी….
रुकी सी हैं किरणे, तेरे रूप आगे
कलियों की शोखी भी,फीकी सी लागे।
हर एक पंखुडी, सर झुकाने लगी है
तुझे देख गुलशन के सौभाग्य जागे॥
शबनम ने खुद की छुपाली जवानी ….
हुई स्वर्ग की, अप्सरा पानी पानी…..
नजर भर इनायत, जहां भी करो तुम
ये बलखाते डग पग, जहां भी धरो तुम।
वही पर नजारो का, श्रृंगार उतरे
जहां पर भी नजरें ईनायत करो तुम॥
तेरे सामने हर ऋतु, आनी जानी……
हुई स्वर्ग की, अप्सरा पानी पानी…
सतीश बंसल
वाह वाह ! बहुत खूब !!
सुंदर रचना
शुक्रिया विभा जी, विजय जी…