तो सैल्फी हो जाऐ…
जब मन खुद ही मुस्काऐ
बस खुद ही खुद को पाऐ
जब खुशी हंसें मुस्काऐ
तो सैल्फी हो जाऐ।
भीड भरे चौराहों पर
पगडंडी, दौराहों पर
आफिस में या राहों पर
जब खुद ही को खुद चाहे..
तो सैल्फी हो जाऐ….
खेल का मैदान हो
भजन का गुणगान हो
या फिर जूतो की दुकान हो
जब भी खुद को खुद के पास पाऐं..
तो सैल्फी हो जाऐ…
मदमस्त फिजाओं में
पार्क की छटाओं में
या महबूबा की बांहों में
जब भी मन उत्सव मनाऐ…
तो सैल्फी हो जाऐ….
यार जब गले मिले
फूल जब दिल के खिले
जब जिन्दगी तुम से मिले
आंखे जब छलक आऐं
तो सैल्फी हो जाऐ….
क्योंकि
गला काट बाजार में
गिरते मानव सार में
मानवता की हार में
दौलत के बाजार में
दर्द के इस मझधार में
केवल एक ही पल
तू मुस्काता है
जब सैल्फी के लिये
अपना चेहरा बनाता है…
जब सैल्फी के लिये
अपना चेहरा बनाता है…
सतीश बंसल
बहुत खूब,,, सेल्फी के लिये ही सही मुस्कुराये तो….
सुंदर सृजन
अति सुंदर रचना
शुक्रिया विभा जी, खुशी जी…