कविता

तो सैल्फी हो जाऐ…

जब मन खुद ही मुस्काऐ
बस खुद ही खुद को पाऐ
जब खुशी हंसें मुस्काऐ
तो सैल्फी हो जाऐ।

भीड भरे चौराहों पर
पगडंडी, दौराहों पर
आफिस में या राहों पर
जब खुद ही को खुद चाहे..
तो सैल्फी हो जाऐ….

खेल का मैदान हो
भजन का गुणगान हो
या फिर जूतो की दुकान हो
जब भी खुद को खुद के पास पाऐं..
तो सैल्फी हो जाऐ…

मदमस्त फिजाओं में
पार्क की छटाओं में
या महबूबा की बांहों में
जब भी मन उत्सव मनाऐ…
तो सैल्फी हो जाऐ….

यार जब गले मिले
फूल जब दिल के खिले
जब जिन्दगी तुम से मिले
आंखे जब छलक आऐं
तो सैल्फी हो जाऐ….

क्योंकि
गला काट बाजार में
गिरते मानव सार में
मानवता की हार में
दौलत के बाजार में
दर्द के इस मझधार में
केवल एक ही पल
तू मुस्काता है
जब सैल्फी के लिये
अपना चेहरा बनाता है…
जब सैल्फी के लिये
अपना चेहरा बनाता है…

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

3 thoughts on “तो सैल्फी हो जाऐ…

  • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

    बहुत खूब,,, सेल्फी के लिये ही सही मुस्कुराये तो….
    सुंदर सृजन

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    अति सुंदर रचना

    • सतीश बंसल

      शुक्रिया विभा जी, खुशी जी…

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