विद्या या व्यापार
विद्या का व्यापार बढ़ा है हाट सजी है गुरुकुल में।
गुरु की नज़रें तनी हुई हैं शिष्य फंस गए चंगुल में।
गुरु के गुरु भी प्रत्येक माह आकर चन्दा ले जाते हैं
गुरु को गुरुर है इसी बात का खिलाते हैं तो खाते हैं।
माना की पिता किसी के जिला पंचायत अधिकारी हैं
पर किसी के घर खाने को बस सूखी रोटी,तरकारी है।
कैसे दें गुरु जी फीस आपको खेत हमारे जलमग्न हैं
पिछले वर्ष दिए गेहूं खूब,आज खाने को नहीं अन्न है।
क्या कहा गुरु जी? शिक्षा का ज्ञान मुफ़्त में नहीं दोगे
शिक्षा का तो कोई मोल नहीं फिर बदले में क्या लोगे?
शिक्षा का खजाना ऐसा है, स्तर रखने से घट जायेगा
ये तो ईश्वर का प्रसाद है जितना बांटोगे बढ़ जाएगा।
माना जीविकोपार्जन के लिए कोई और नहीं हैं रास्ते
लो उनसे जो देने में सक्षम,गरीबों से धन किस वास्ते?
शिक्षा का तो कोई मोल नहीं फिर बदले में क्या लोगे?…..
बिल्कुल सही कहा आपने,, पर आज शिक्षा का सिर्फ मुल्य ही मुल्य है
स्तर तो बिल्कुल ही गिर चुका है,बस व्यापार बनकर रह गई है आज की शिक्षा,,,
सुंदर सृजन….
धन्यवाद ख़ुशी जी
अति सुंदर रचना
उम्दा सोच
आभार आदरणीया