उपन्यास अंश

अधूरी कहानी:अध्याय-14: नये दोस्त

उस दिन समीर को बहुत मार पड़ी कुछ लड़के ये सब देखकर समीर को बचाने जैसे ही गये उसी वक्त उसने समीर को छोड़ दिया उन लोगों ने समीर को उठाया तो समीर बोला नहीं मैं ठीक हूॅ उन लोगों ने पूछा ज्यादा लगी तो नही तो समीर बोला नहीं।
फिर उन लोगों ने समीर को घर पहुॅचाया।अगले सुबह समीर ने कम्प्यूटर आॅन किया ही था तभी उसके मोबाइल कि घंटी बजी समीर ने देखा तो कोई नया नमबर था काॅल अटेंड की तो उधर से आवाज आयी साॅरी यार मुझे पता नही था तुम्हें कुछ नहीं पता है आइ एम सो साॅरी फोन उसी लड़के का था जिसने समीर को मारा था।
समीर ने कहा इटस ओके, पर आप इतने गुस्से में क्यों आ गये थे तो उसने कहा मेरा नाम सिद्धार्थ है और मेरे पिता का नाम रामदास है मेरे पापा बहुत बड़े आदमी थे तब उन्होंने मेरी माॅ से शादी की और कुछ सालों में मेरी माॅ को छोड़कर चले गये और दूसरी शादी कर ली ।इसीलिए बचपन में मेरे दोस्त मुझे रामदास कहकर चिढाते थे।फिर मैंने तभी कसम खायी थी कि जब तक मैं अपना पापा को ढूँढकर सबक नहीं सिखाऊॅगा तब तक चैन से नही बैठूॅगा।वस इसीलिए मैं रामदास के नाम से चिढता हूॅ।समीर बोला इसमें तुम्हारी गलती नहीं है ऐसे में कोई भी यही करता जो तुमने मेरे साथ किया है।सिद्धार्थ बोला क्या हम दोस्त बन सकते है समीर बोला बन सकते हैं का क्या मतलव हम दोस्त हैं ।
सिद्धार्थ ने कहा ओके ठीक है कल मिलते हैं कालेज में और फोन काट दिया।
अगले दिन क्लास में रेनुका और रेनुका की दोस्त समीर और सिद्धार्थ को एक साथ देखकर दंग रह गये।फिर कुछ और लड़के आ गये जिन लोगों ने समीर को घर पहुँचाया था वे लड़के भी आ गये अब समीर के बहुत से नये दोस्त बन गये फिर सब मिलकर रेनुका को सबक सिखाने के बारे में प्लान करने लगे।

दयाल कुशवाह

पता-ज्ञानखेडा, टनकपुर- 262309 जिला-चंपावन, राज्य-उत्तराखंड संपर्क-9084824513 ईमेल आईडी-dndyl.kushwaha@gmail.com

2 thoughts on “अधूरी कहानी:अध्याय-14: नये दोस्त

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा और रोचक उपन्यास !

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा उपन्यास !

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