कविता

बेटी

होती है बेटी परिवार की अमूल्य निधि,
दादा-दादी माता-पिता भाई की दुलारी है।
सूना है घर-परिवार जहाँ बेटी नहीं,
बेटी ही हमारे घर आँगन की किलकारी है।
बेटी जब बड़ी होती, जाती है पराये घर,
दोनों ही कुलों को वह मान देती भारी है।
बेटियाँ बचाइए, समाज को बचाना है तो,
बेटियों को मारना महा विनाशकारी है।।

विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

6 thoughts on “बेटी

  • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

    बिल्कुल सही लिखा आपने सूना है वो घर जहाँ बेटी नही,बेटियाँ तो किल्कारी है घर आँगन की..
    चहक उसी से होती है घर में,,,फिर भी पता नही क्यों मारी जाती है बेटियाँ…..
    सुंदर कविता |

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, खुशी जी !

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद इस सुन्दर एवं प्रासंगिक कविता के लिए माननीय श्री विजय सिंघल जी। मैंने २० – २५ वर्ष पूर्व आर्य विद्वान श्री श्याम सुन्दर स्नातक जी का आर्य समाज देहरादून में प्रवचन सुना था जिसमे उन्होंने कहा था कि जिस घर में बेटी होती है उस घर में तहजीब होती है। पिता व भाई घर में शराब पीने की जरुरत नहीं कर सकते। उन्होंने उदहारण भी दिए थे कि जिन घरों में बेटियां नहीं थी वहां किस प्रकार से पारिवारिक और सामाजिक मर्यादाएं टूटी थी। आपका धन्यवाद।

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम मान्यवर ! आभारी हूँ ! जो मेरे दिमाग़ में आया वह लिख दिया। मुझे प्रसन्नता है कि आपको रचना अच्छी लगी।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , कविता में सच्चाई ही सच्चाई है ,बेतिआं वाकई बहुत पियार लेती और देती हैं .

    • विजय कुमार सिंघल

      सही कहा भाई साहब आपने।

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