बेटी
होती है बेटी परिवार की अमूल्य निधि,
दादा-दादी माता-पिता भाई की दुलारी है।
सूना है घर-परिवार जहाँ बेटी नहीं,
बेटी ही हमारे घर आँगन की किलकारी है।
बेटी जब बड़ी होती, जाती है पराये घर,
दोनों ही कुलों को वह मान देती भारी है।
बेटियाँ बचाइए, समाज को बचाना है तो,
बेटियों को मारना महा विनाशकारी है।।
— विजय कुमार सिंघल
बिल्कुल सही लिखा आपने सूना है वो घर जहाँ बेटी नही,बेटियाँ तो किल्कारी है घर आँगन की..
चहक उसी से होती है घर में,,,फिर भी पता नही क्यों मारी जाती है बेटियाँ…..
सुंदर कविता |
धन्यवाद, खुशी जी !
नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद इस सुन्दर एवं प्रासंगिक कविता के लिए माननीय श्री विजय सिंघल जी। मैंने २० – २५ वर्ष पूर्व आर्य विद्वान श्री श्याम सुन्दर स्नातक जी का आर्य समाज देहरादून में प्रवचन सुना था जिसमे उन्होंने कहा था कि जिस घर में बेटी होती है उस घर में तहजीब होती है। पिता व भाई घर में शराब पीने की जरुरत नहीं कर सकते। उन्होंने उदहारण भी दिए थे कि जिन घरों में बेटियां नहीं थी वहां किस प्रकार से पारिवारिक और सामाजिक मर्यादाएं टूटी थी। आपका धन्यवाद।
प्रणाम मान्यवर ! आभारी हूँ ! जो मेरे दिमाग़ में आया वह लिख दिया। मुझे प्रसन्नता है कि आपको रचना अच्छी लगी।
विजय भाई , कविता में सच्चाई ही सच्चाई है ,बेतिआं वाकई बहुत पियार लेती और देती हैं .
सही कहा भाई साहब आपने।