कविता

बिटिया

पूछे हर बिटिया
के दिल की धड़कन
जिस घर खेला महका बचपन
खिले हुए बड़े अरमां सारे
भाभी बोले नहीं अब ये
घर परिवार उसका
हो विदा जिस घर आई
नयी दुनिया बसाने
सास बोले नहीं ये घर परिवार उसका
न पीहर न सासरा
फिर कौन सा है
घर परिवार एक बेटी का नसीब
कोई तो कहे कोई तो बताये
कोई तो सुने उस की खामोश
सिसकती आहों को और
बताये कौन सा है फिर उसका
घर और परिवार
थी जो कभी सोन चिरिया
अपने बाबुल की
जिसे बना रौनक
दूसरे घर की
किया दूर जिगर का टुकड़ा
आज क्यों फिर नहीं
कोई भी आशियाँ उसका!

मीनाक्षी सुकुमारन

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |

4 thoughts on “बिटिया

  • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

    नारी के अंतर्मन की पीडा को उजागर करती सुंदर रचना

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते बहिन जी ! आपकी कविता बहुत अच्छी लगी। वेदो ने शायद इस प्रश्न का बहुत सुन्दर समाधान किया है। वेदो ने नारी को उषा के समान प्रकाशवती, वीरांगना, वीर प्रसवा, विद्यालंकृता, स्नेहमयी माँ, पतिंवरा, धर्मपत्नी, अन्नपूर्णा जैसे विशेषणों के साथ सद्ग्रहिणी एवं “”सम्राज्ञी”” कहा है। हमारे पौराणिक बन्धुवों व विदेशी लोगो ने नारी का अवमूल्यन किया है. निवेदन है कि यदि कभी अवसर मिले तो डॉ. रामनाथ वेदालंकार जी की पुस्तक “वैदिक नारी” अवश्य पढ़े, लाभप्रद हो सकती है। सुन्दर अवं प्रभावशाली कविता के लिए पुनः बधाई स्वीकार करें।

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    पीढ़ी दर पीढ़ी गुजर रही है
    ढूंढ़ते जबाब जो आपके हैं सवाल

    अति सुंदर रचना

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता।

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