बिटिया
पूछे हर बिटिया
के दिल की धड़कन
जिस घर खेला महका बचपन
खिले हुए बड़े अरमां सारे
भाभी बोले नहीं अब ये
घर परिवार उसका
हो विदा जिस घर आई
नयी दुनिया बसाने
सास बोले नहीं ये घर परिवार उसका
न पीहर न सासरा
फिर कौन सा है
घर परिवार एक बेटी का नसीब
कोई तो कहे कोई तो बताये
कोई तो सुने उस की खामोश
सिसकती आहों को और
बताये कौन सा है फिर उसका
घर और परिवार
थी जो कभी सोन चिरिया
अपने बाबुल की
जिसे बना रौनक
दूसरे घर की
किया दूर जिगर का टुकड़ा
आज क्यों फिर नहीं
कोई भी आशियाँ उसका!
— मीनाक्षी सुकुमारन
नारी के अंतर्मन की पीडा को उजागर करती सुंदर रचना
नमस्ते बहिन जी ! आपकी कविता बहुत अच्छी लगी। वेदो ने शायद इस प्रश्न का बहुत सुन्दर समाधान किया है। वेदो ने नारी को उषा के समान प्रकाशवती, वीरांगना, वीर प्रसवा, विद्यालंकृता, स्नेहमयी माँ, पतिंवरा, धर्मपत्नी, अन्नपूर्णा जैसे विशेषणों के साथ सद्ग्रहिणी एवं “”सम्राज्ञी”” कहा है। हमारे पौराणिक बन्धुवों व विदेशी लोगो ने नारी का अवमूल्यन किया है. निवेदन है कि यदि कभी अवसर मिले तो डॉ. रामनाथ वेदालंकार जी की पुस्तक “वैदिक नारी” अवश्य पढ़े, लाभप्रद हो सकती है। सुन्दर अवं प्रभावशाली कविता के लिए पुनः बधाई स्वीकार करें।
पीढ़ी दर पीढ़ी गुजर रही है
ढूंढ़ते जबाब जो आपके हैं सवाल
अति सुंदर रचना
बहुत अच्छी कविता।