ग़ज़ल
कायम जिसके दिल में आज भी ईमान रहता है,
वो शख्स इस दुनिया में अब परेशान रहता है
मजमा लग गया सारे जहां के खबरनवीसों का,
अफवाह थी कि इस बस्ती में इक इंसान रहता है
इक तुम हो कि गैरों से तुम्हें मिलती नहीं फुर्सत,
इक हम हैं कि मिलने का बड़ा अरमान रहता है
तड़पता है ये दिल मेरा जिसके वास्ते अब भी,
हमारे हाल से अक्सर वही अनजान रहता है
ज़ख्म वो रोज़ देते हैं चला कर तीर बातों के,
सुकूं ये है कि उनको अब भी मेरा ध्यान रहता है
यकीं कर लेता है हर बार वादों पे तुम्हारे ये,
मेरे अंदर कोई बच्चा अभी नादान रहता है
— भरत मल्होत्रा
बहुत सुन्दर ग़ज़ल !