कविता

गणपति वन्दना

आंग्ल प्रेमी सीखो आंग्ल, पर हिंदी से न विमुख हो

सुनिश्चित करो, दिन का हर कामकाज हिंदी में हो |

अच्छी बात है सीखना हर भाषा, बुरी नहीं कोई भाषा

विदेशी को क्यों महत्त्व ज्यादा, समृद्ध है भारत की भाषा |

हिंदी भाषा न गरीब है, न है किसी गरीब की या धनी की

चाँद-सूरज, हवा, पानी, रश्मि जैसे, यह है हर देशवासी की |

नगर, गाँव, अमीर, गरीब, हिंदी है हरजन की मन की भाषा |

भ्रम है कि, “कद बढ़ता है उसकी जो बोलता है आंग्ल भाषा |”

पढो लिखो बोलो हिंदी विन्दास से, हर वक्त हर जगह् |

तभी मिलेगी विश्व पटल पर, अपनी हिंदी को उचित जगह |

हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह, हिंदी पक्ष, माह पर न समाप्त हो

हिंदी का प्रयोग हर कामकाज में, हर दिन, हर क्षण हो |

— कालीपद ‘प्रसाद’

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !

4 thoughts on “गणपति वन्दना

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया रचना !

    • कालीपद प्रसाद

      आपका आभार विजय कुमार जी

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    अति सुंदर रचना

    • कालीपद प्रसाद

      आपका आभार विभारानी जी !

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