कविता

गणेश-वन्दना

हे गणपति गणेश, गौरी नंदन महेश,
सुन लो मेरी प्रार्थना, करो पूरन कामना।।

हर लो सभी विकार, कांतिप्रिय संसकार,
जीवन तब उद्धार, निर्मल ज्ञान भावना।।

ऋद्धि-सिद्धि के हो दाता, मोदक है अति भाता,
निशदिन मैं तुम्हारी, करूँ वंदन साधना ।।

कृपा दृष्टि सदा चाहूँ, कष्ट से न घबराऊँ,
दया करो श्री गणेश, विराजो मन आँगना।।

******गुंजन अग्रवाल

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

One thought on “गणेश-वन्दना

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा कवित्त ! पर लय में थोड़ी कमी है.

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