गीत/नवगीत

यूं खिला है तुम्हारा, बदन ऐं हंसीं…

यूं खिला है तुम्हारा, बदन ऐं हंसीं
ताज जूं, चाँदनी मे नहाया हुआ।
वादियां हो गयी हैं, जवां और भी
इनपे तेरी जवानी का, साया हुआ॥

इन हवाओं में हैं कुछ नशे का असर, या कि तेरे बदन की खुमारी है ये।
घुल रही हैं फिजाओं में जादूगरी, या अदाओं की मस्ती तुम्हारी है ये॥
देखकर तेरे जलवों का जलवा सनम, इन बहारो का जलवा सवाया हुआ….
वादियां हो गयी हैं, जवां और भी
इनपे तेरी जवानी का, साया हुआ…..

झुक रहे हैं सितारे तुम्हें देखकर, सजदे करने लगीं ये बहारें तमाम।
तेरे यौवन से हैरान है खुद रती, तुमको पाने को आतुर हुऐ देव काम॥
हर किसी को तेरी चाह की चाह है, रुप तेरा ख्यालों की काया हुआ….
वादियां हो गयी हैं, जवां और भी
इनपे तेरी जवानी का, साया हुआ….

हुस्न के तेज को कुछ सम्हालों जरा, आग से इस जहां को बचा लो जरा।
उठ चला है धुवा ईश्क का हर तरफ, अपने दीवानों पर तर्स खालो जरा॥
कोशिशे खूब की, दिल को रोका बहुत , हर जतन रोक पाने का जाया हुआ…
वादियां हो गयी हैं, जवां और भी
इनपे तेरी जवानी का, साया हुआ…..

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

2 thoughts on “यूं खिला है तुम्हारा, बदन ऐं हंसीं…

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

    • सतीश बंसल

      आपका आभार विजय जी…

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