ग़ज़ल : सब कुछ तो व्यापार हुआ
मेरे जिस टुकड़े को दो पल की दूरी बहुत सताती थी
जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार हुआ
रिश्तें नातें -प्यार की बातें , इनकी परबाह कौन करें
सब कुछ पैसा ले डूबा ,अब जाने क्या व्यवहार हुआ
दिल में दर्द नहीं उठता है भूख गरीबी की बातों से
धर्म देखिये कर्म देखिये सब कुछ तो व्यापार हुआ
मेरे प्यारे गुलशन को न जाने किसकी नजर लगी
युवा को अब काम नहीं है बचपन अब बीमार हुआ
जाने कैसे ट्रेन्ड हो गए मम्मी पापा फ्रेंड हो गए
शर्म हया और लाज ना जानें आज कहाँ दो चार हुआ
ताई ताऊ , दादा दादी , मौसा मौसी दूर हुएँ अब
हम दो और हमारे दो का ये कैसा परिवार हुआ
— मदन मोहन सक्सेना
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