गजल
फिर तुझे माहताब लिखूँगा,
एक खिलता गुलाब लिखूँगा
कहीं तेरा नाम ना पढ़ ले कोई,
तुमको आली जनाब लिखूँगा
मेरी चाहत के बिखरे पन्नों पर,
आज सारा हिसाब लिखूँगा
तेरी जुल्फों को घटाएँ लिखकर,
तेरी आँखों को शराब लिखूँगा
डूब जाता है ये जहां जिसमें,
आँसूओं को सैलाब लिखूँगा
जो कयामत से कम नहीं होती,
जुदाई को अज़ाब लिखूँगा
इश्क की दास्तान हो जिसमें,
वो गज़ल की किताब लिखूँगा
मिला जो भी अच्छा ही मिला,
ना मिला जो खराब लिखूँगा
— भरत मल्होत्रा।
बहुत खूब !
सुंदर रचना