इन्सानियत कहां है तू….
इंसानियत कहां है तू
ढूंढता हूं तुझे
जब मार दिया जाता है
बेटियों को कोख में।
तलाशता हूं तुझे
जब नोचते हैं दरिन्दें
किसी किसी बेटी की अस्मत।
पुकारता हूं तुझे
जब गरीबी से तंग आकर
खुद को मिटाती है जिन्दगियां।
खोजता हूं तुझे
जब देखता हूं
अनाथालयों में
अपनी अंतिम सांसे गिनते
बुजुर्गों को।
फिर सोचता हूं
क्या तु सच में है
और यदि है
तो फिर
बेबसी का मातम क्यूं है
आतंक से औरतें बेवा क्यूं है
मांग का सिन्दूर उजडता क्यूं है
और इन्सान इन्सान से
लडता क्यूं है।
तुझे ढूंढ कर थक गया हूं
अब तो तू
बस कहानियों में नजर आती है
या फिर
किसी निर्भया की मौत पर
मोमबत्ती जलाती है।
इन्सानियत कहां है तू
इन्सानियत कहां है तू….
सतीश बंसल