कविता

इन्सानियत कहां है तू….

इंसानियत कहां है तू
ढूंढता हूं तुझे
जब मार दिया जाता है
बेटियों को कोख में।
तलाशता हूं तुझे
जब नोचते हैं दरिन्दें
किसी किसी बेटी की अस्मत।
पुकारता हूं तुझे
जब गरीबी से तंग आकर
खुद को मिटाती है जिन्दगियां।
खोजता हूं तुझे
जब देखता हूं
अनाथालयों में
अपनी अंतिम सांसे गिनते
बुजुर्गों को।
फिर सोचता हूं
क्या तु सच में है
और यदि है
तो फिर
बेबसी का मातम क्यूं है
आतंक से औरतें बेवा क्यूं है
मांग का सिन्दूर उजडता क्यूं है
और इन्सान इन्सान से
लडता क्यूं है।
तुझे ढूंढ कर थक गया हूं
अब तो तू
बस कहानियों में नजर आती है
या फिर
किसी निर्भया की मौत पर
मोमबत्ती जलाती है।
इन्सानियत कहां है तू
इन्सानियत कहां है तू….

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.