मुक्तक
आंधी मगरूर दरख्तों को पटक जायेगी,
सिर्फ वो ही शाख बचेगी जो लचक जायेगी,
आसमां छूने का हो जायेगा खुद अंदाजा,
जब जमीं पाँव के नीचे से सरक जायेगी
— भरत मल्होत्रा
आंधी मगरूर दरख्तों को पटक जायेगी,
सिर्फ वो ही शाख बचेगी जो लचक जायेगी,
आसमां छूने का हो जायेगा खुद अंदाजा,
जब जमीं पाँव के नीचे से सरक जायेगी
— भरत मल्होत्रा
Comments are closed.
बहुत खूब आदरणीय वाह
बहुत खूब !