सामाजिक

क़ाबिले तारीफ़

विभा दीदी पीछे में तारीफ करते हैं भाई साहब ??उस दिन जब आप किचेन में थी तब आपकी काफी तारीफ कर रहे थे भाईसाहब ?फिर आप को देख कर चुप हो गए ?

कल लल्ली ने लिखा …… पत्नी प्रोत्साहन दिवस था कल

पीठ पीछे जो तारीफ़ होती हो ….. सामने भी कुछ यूँ तारीफ़ करते हैं

हमारे परिचित में जितनी औरतें हैं उनमें सबसे कम काम तुम करती हो

कैसे ?

देखो ! सुबह शाम टहलने जाती हो खुद के लिए तो सब्जी दूध घर का सामान ले आती हो …… काम ना तुम्हारा टहलना हुआ और समान ले आई तो कितने तनाव से बची ….. खुद के लाये समान में नुक्ताचीनी कर नहीं सकती हो …… ना सवाल कि क्या पकायें

रोटी कन्ट्रोल सब्जी पकाती हो …… कम खाने से मोटापा नहीं होता तो …… ना bp ना सुगर ….. ना कोई सेवा का मौका ….. ना डॉ का दौड़ धूप तुम्हें करना पड़ता है

ना रोज कपड़ा धोती हो ना रोज आयरन करती हो ….. दो जोड़ी कपड़े तो निकलते हैं ….. एक दिन बीच कर वाशिंग मशीन चलाती हो ….. एक दिन बीच कर आयरन करती हो

आयरन करने से रोटी पकाने से तुम्हारा ही फायदा है …. मुफ़्त का कसरत कलाई का होता है

बर्तन खुद धोती हो कि दाई का किचकिच कौन सुने …. ना आई तो बर्तनों का अम्बार देख कौन कुफ्त होये …… यहां भी फायदा तुम्हारा ……

आज चाय में ऐसा क्या पड़ गया

क्यों क्या हुआ ?

गलती से शायद ! अच्छा बन गया

है न काबिले तारीफ़ ; तारीफ़ करने का अंदाज , दिल बाग़ बाग़ करता …… झुँझलाने का हक़ नहीं पत्नियों का ?

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ