गजल
रह गई कौन सी कसर आखिर,
हुआ तुझपे ना कुछ असर आखिर
जल गया धूप में शहर सारा,
आई बारिश की ना खबर आखिर
जुस्तजू जिसकी थी वो मिल ना सका,
कटा तनहा ही ये सफर आखिर
भटकती बिजलियों ने ढूँढ लिया,
सुलगाने को मेरा घर आखिर
हर आगाज़ का अंजाम तय है,
शाम में ढल गई सहर आखिर
जिंदगी धीमा सा ज़हर है इक,
जिया जो भी गया वो मर आखिर
— भरत मल्होत्रा।