उपन्यास अंश

अधूरी कहानी: अध्याय-21: बाईक रेस

एन्वल फंगशन की सारी तैयारियाँ हो चुकी थीं सबसे पहले बाईक रेस होनी थी फिर पुरस्कार वितरण और फिर पार्टी सब लोग मैदान में इकट्ठा हो चुके थे जिन लोगों ने बाईक रेस में भाग लिया था वे सड अपनी बाईक पर सवार ने होकर एक कतार में खड़े थे और बिलकुल तैयार थे तभी पहली घंटी बजी सबने अपनी बाईक स्टार्ट की फिर दूसरी घंटी बजी औब सबसे गियर डाला और जैसे ही तीसरी घंटी बजी तब सब लोगों की बाईकस् कालेज से निकलकर रोड में दौड़ने लगी थी। सबसे अच्छी बाईक ड्राइव करता था तो वह और लोगों से बहुत आगे निकल गया आगे जाने के दो रास्ते थे और जिस रास्ते पे जाना था उस टर बोर्ड लगा था पर रेनुका ने बोर्ड बदलकर दूसरे रास्ते पर लगा दिया और छुप गयी फिर जैसे ही समीर उस रास्ते से निकला तो रेनुका ने बोर्ड वापस अपनी जगह पर लगा दिया और सब लोग सही रास्ते पर निकल गये

कुछ आगे जाने के बाद समीर ने पीछे मुड़कर देखा तो दूर-दूर तक कोई नहीं था जैसे ही समीर आगे मुड़ा अचानक उसके सामने रोड में रस्सी तनी थी समीर की बाईक उससे जा टकरायी और समीर रोड से नीचे जा गिरा नीचे घास होने के कारण समीर को ज्यादा चोट नहीं लगी समीर तुरंत वहां से उठा तभी रेनुका उसके सामने थी अबतक समीर समझ गया था कि ये सब रेनुका ने किया है तभी समीर ने रेनुका को थप्पड़ मारा और कहा ये क्या बदतमीजी है तभी रेनुका गुस्से में बोली बदतमीजी तो अब होगी तुम्हारे साथ अब तुम्हें पता चलेगा कि रेनुका से पंगा लेने का क्या अन्जाम हो सकता है और फिर समीर को कुछ गुंडो ने घेर लिया जिन्हें रेनुका लायी थी फिर रेनुका एक मोटरबोट पर सवार होकर बोली बाय समीर मल्होत्रा और मोटरबोट स्टार्ट करके झील में चली गयी और वो गुंडे समीर को पीटने लगे

तभी समीर के दोस्त वहां पहुँच गये और सब लोग गुंडो को पीटने लगे जिससे सभी गुंड भाग गये समीर ने पूछा तुम लोग यहां कैसे तब रवि बोला यार जब हम आगे पहुँचे तो वहां दो रास्ते थे हम सही रास्ते पर चल दिए पर तू कहीं नहीं दिखा तब हमें समझ में आया और जो बोर्ड रोड में लगा था वह भी झुका हुआ था तब हमने कहा भाड़ में जाये रेस पहले समीर को देखो औब हमने अपनी बाईकस् घुमायीं और यहां आ गये फिर समीर ने सबको गले लगा लिया।

तभी एक आदमी वहां आया शायद वह मोटरबोट का मेकेनिक था वह बोला जो मोटरबोट मैम ले गयीं हैं उसमें ब्रैक नहीं हैं वो मैं ठीक कर रहा था और जैसे ही कुछ लेने अंदर गया तब तक वह मोटरबोट लेकर निकल गयीं थीं। ये सुनते ही समीर मोटरबोट पर बैठकर रेनुका की तरफ निकल पड़ा ये देखकर रेनुका ने स्पीड और बड़ा दी दूसरी तरफ झील का अगला छोर था तभी रेनुका ने ब्रैक लगाये पर मोटरबोट नहीं रुकी तब रेनुका ने मोटरबोट दूसरी तरफ मोड़ ली और चिल्लाने लगी। समीर ने स्पीड बढ़ायी और रेनुका के पास पहुँच गया और फिर रेनुका को धक्का देखकर उसके साथ पानी में कूद गया और दोनों मोटरबोट एक चट्टान से जा टकरायीं और ब्लासट हो गयीं।

समीर ने रेनुका को पानी से बाहर निकाला और उसे वहीं छोड़कर चला गया रेनुका बहुत सरमिंदा थी।

अगले दिन लाइब्रेरी में रेनुक आयी और समीर के पास गयी और समीर से बोली समीर प्लीज मुझे माफ कर दो मैंने तुम्हें गलत समझा पर फिर भी तुमने मेरी जान बचायी. समीर कुछ नहीं बोला और वहाँ से चले गया. रेनुका समीर के पीछे चल दी और बोली एम साॅरी समीर प्लीज अब माफ कर दो मुझे. अब तक समीर और रेनुका के दोस्त भी आ चुके थे और समीर से बोले यार समीर अब माफ भी कर दो यार, पर समीर कुछ नही बोला और वहां से जाने लगा. तभी रेनुका बोली समीर मुझे माफ कर दो वरना तुमने जो मुझे नयी जिंदगी दी उसे मैं खत्म कर दूंगी समीर बोला- जाओ मर जाओ जाकर मुझे कुछ नहीं करना वैसे भी तुम मेरी लगती ही क्या हो और समीर वहाँ से बाईक लेकर घर चले गया और रेनुका रोते हुये अपने कमरे में चली गयी ।

शाम को समीर के दोस्त समीर के घर पहुँचे और समीर को समझाने लगे समीर की मम्मी सबके लिये काॅफी लायी उर सबको काॅफी दी सूरज बोला- यार समीर रेनुका बहुत जिद्दी है वह कुछ भी कर सकती है तुझे माफ कर देना चाहिये था तभी समीर का फोन बजा फोन हाॅस्पिटल से रेनुका की किसी दोस्त का था वह बोली समीर रेनुका ने अपने हाथ की नस काट ली है और अभी बेहोश है समीर ने फोन रखा और बोला यार रवि रेनुका ने अपने हाथ की नस काट ली है और कार की चाबी लेकर कार की तरफ दौड़ा उसके दोस्त भी दौड़े और कार में बैठ गये

समीर हाॅस्पिटल पहुँचा रेनुका को अभी भी होश नहीं आया था समीर जाकर रेनुका के पास जाकर बैठ गया. थोड़ी देर बाद रेनुका को होश आया समीर ने पूछा रेनुका अब कैसा लग रहा है रेनुका बोली समीर तुमने मुझे माफ कर दिया समीर बोला अभी नहीं और रेनुका का हाथ चूम लिया और बोला अब माफ किया. तभी रेनुका समीर से लिपट गई और बोली- “आई लव यू” समीर बोला- “आई लव यू टू, मेरी जान” तभीअचानक सभी लोग अंदर आ गये और तालियाँ बजाने लगे रेनुका समीर से अलग हो गयी और शर्म से लाल हो गयी।

दयाल कुशवाह

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