कविता – क्यों दिया
तुझे जाना ही था तो सोया था, मुझे जगा क्यों दिया।
मेरे साथ दगा करके, निचाशय का प्रमाण क्यों दिया।
नि: स्वार्थ तुम मेरे अन्दर प्यार को जगा क्यों दिया।
निहठा समझकर तुमने मुझे ….ठुकरा क्यों दिया।
बेवफाई का राज तुमने …….मुझसे छिपा क्यों दिया।
मोम की तरह पिघले दिल को निहाई बना क्यों दिया।
पनपते फूल जैसे प्यार का ..निहनन कर क्यों दिया।
निस्तारण ही था तो मुझे पहले बता नहीं, क्यों दिया।
तुमनें अपनी दुनिया बसाकर मुझे यहाँ छोड क्यों दिया।
मजम्मत करके मेरा,अपने मजनूं के साथ चल क्यों दिया।
निष्ठुर दूनियां में मुझे अकेला कर घर वसा क्यों लिया।
खुदा बक्से तेरे प्यार को, मुझे दिल से निकाल क्यों दिया।
@रमेश कुमार सिंह
०३-०९-२०१५
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बहुत बढ़िया
आभार आपका सादर प्रणाम।