षड्यंत्र को जानो ! हिन्दूओ और मुसलमानो
यह मेरा नितान्त व्यक्तिगत मत है कि भारत के अधिकांश मुस्लिम शान्ति चाहते हैं और हिन्दुओं के साथ बिना लड़ाई झगड़ों तथा मतभेदों के अपना अमन चैन भरा जीवन बिताना चाहते हैं I यही बात हिन्दुओं के लिए भी सत्य है I परन्तु मुस्लिमों के दिलोदिमाग में हिन्दुओं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के प्रति नफरत घुसेड़ने का काम बड़ी ईमानदारी से दशकों से किया जाता रहा है I यह भी सच है कि आर.एस.एस. के ही वरिष्ठ स्वयंसेवक श्री इन्द्रेश कुमार मुस्लिम भाइयों के बीच प्रेम और सौहार्द्र के लिए सतत प्रयास कर रहे हैं I
इतने सालों में जिस कदर से मुस्लिमों का धार्मिक (केवल) तुष्टीकरण किया गया, उसके अनुपात में यदि उनके सर्वांगीण और वास्तविक विकास पर भी ध्यान दिया जाता तो क्या वर्तमान में भारत के मुस्लिम शिक्षा अथवा अन्य क्षेत्र में अग्रणी नहीं होते, क्या इतना पिछड़ापन रहता ? यह बड़ा गम्भीर सवाल है, जो मेरे मन मस्तिष्क में अनेक बार उठा I हालांकि हर बार मुझे भीतर से यही जवाब मिला कि कहीं न कहीं मुस्लिमों के साथ गहरा छल हो रहा है I
न तो मैं राजनीतिज्ञ हूं, न कोई बड़ा विचारक, या समाज सुधारक परन्तु फिर भी स्थितियों का विश्लेषण करने की मेरी सीमित योग्यता के चलते मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि मुसलमानों को हिन्दुओं के खिलाफ भड़काकर उनके उस विकास को अवरुद्ध किया जाता रहा है, जिसके वे हकदार रहे हैं I मुझे लगता है कि “कुछ” लोगों को लगता रहा है कि यदि मुस्लिम पढ़ लिखकर समझदार और अथवा सम्पन्न हो गए तो हिन्दुओं की तरह वे किसी के भी एकमुश्त वोट बैंक नहीं रह जाएंगे I वे अपनी बुद्धि से वोट देने लगेंगे और अपने हितों के विषय में निर्णय लेने लगेंगे I
बेहद अफ़सोसनाक और खौफनाक हकीकत यह है कि वही सिलसिला निरन्तर बेरोकटोक चल रहा है I इन दिनों एक नया चलन चला है, मुस्लिम के साथ व्यक्तिगत या किसी भी कारण से अत्याचार होता है तो उसे खूब दिखाओ, दिनभर दिखाओ, बार बार दिखाओ ताकि पूरे देश में ही नहीं बल्कि विश्वभर में यह सन्देश जाए कि मुस्लिम भारत में पूरीतरह असुरक्षित हैं, इससे उनमें भय तथा आक्रोश पैदा हो रहा है I हिन्दू के साथ चाहे जो हो जाए, उसे या तो दिखाया ही नहीं जाए या कम महत्व दिया जाए ताकि हिन्दुओं के साथ हुई घटना उस शहर में ही सिमट कर रह जाए, (हालांकि सारी घटनाएं फेसबुक के माध्यम से पूरे देश में पता चल रही हैं), ताकि हिन्दू आक्रोशित और एकजूट हों कि वे मुसलमानों के कारण उपेक्षित हैं I
इन सबके दो बहुत ही बड़े, दुखद, राष्ट्र विरोधी और दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम सामने आए हैं, पहला तो यह कि हिन्दुओं को लगने लगा है कि वे एकता के अभाव में अपने देश में ही नेग्लेक्टेड, असुरक्षित और उपेक्षित हैं तथा मुस्लिम प्रोटेक्टेड और वी.आई.पी. हैं I दूसरा मुस्लिम यह समझने लगे हैं कि अपने अस्तित्व के लिए उन्हें “कुछ न कुछ” करना ही पड़ेगा I इसका फायदा भारत विरोधी ताकतें उठा रही हैं और मौका लगने पर ज्यादा आक्रामकता के साथ उठा सकती हैं I
एक दूसरे के प्रति अविश्वास और वैमनस्य की बहुत बड़ी दीवार खड़ी होने लगी है I जिसके समग्र परिणामों का अनुमान लगाना बेहद कठिन है I
मैं पिछले दो माह से फेसबुक की दुनिया में सक्रिय हुआ हूं, ऐसी घटनाओं को हर दिन देख – पढ़ रहा हूं और हिन्दू होने के नाते ऐसा लगने लगा कि हम छले जा रहे हैं I एक नफरत भरा आक्रोश भीतर आकार लेने लगा है I
मैंने अभी तीन चार दिन पहले ही आत्म विश्लेषण किया तो लगा कि इन तमाम घटनाओं को पढ़ पढ़ कर मेरे भीतर का मनुष्य अचानक कमजोर होने लगा है I और मैं स्वयं को मनुष्य की बजाय हिन्दू मानने की राह पर चल पड़ा है, जबकि मैं दिन में तीन चार बार सर्व कल्याण मन्त्र “सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया …” को पूरे मनोयोग से दोहराता रहता हूं I नियमित श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भागवत गीता और जैनदर्शन के कुछ श्लोकों का पठन करने वाले, मुझमें ऐसा अधोपतन होने लगे, यह मेरे लिए बेहद दुखद था I मेडिकल शिक्षक होने के नाते मैं पिछले तीस सालों से लगातार प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अपने युवा विद्यार्थियों को यह सन्देश स्पष्ट रूप से देता रहा हूं कि हमारे पास जो रोगी आएगा, वह न तो हिन्दू होगा न मुस्लिम, अमीर या गरीब भी नहीं, काला या गोरा भी नहीं, गन्दा-स्वच्छ भी नहीं, सुन्दर- भद्दा भी नहीं बल्कि वह एक दर्द या रोग से कराहता विवश इंसान होगा, जिसे रोगमुक्त करने का प्रयास हमें पूरी ईमानदारी से करना है I
इस पूरे विषय पर सोचा तो लगा कि इसतरह तो हिन्दू और मुस्लिम एक दूसरे के खिलाफ एकजुट होकर कुछ भी करने को तत्पर हो सकते हैं I हिंसा और अशान्ति और न जाने क्या क्या सम्भव है I नतीजा भारत विकास की बजाय पतन की राह पर दौड़ने लगेगा I
मुझे लगता है कि पूरे देश में जगह जगह पढ़े-लिखे और समझदार मुस्लिम एक जाजम पर बैठकर पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर तथा परिस्थितियों के सन्दर्भ में गहन चिन्तन मनन और विश्लेषण करें तथा प्रयोग के तौर पर ही एक बार कुछ सालों के लिए ही सही, उन ताकतों को अपने पास न आने दें, जो नफरत की बुनियाद पर मुस्लिमों को तरक्की का सपना दिखा – दिखा कर इस्तेमाल कर, उन्हें तरक्की से दूर रखने में में कामयाब होते रहे हैं I जो मुस्लिम इस्लाम के नाम पर वैमनस्य फैलाना चाहते हैं या अशान्ति चाहते हैं, उनको या तो हतोत्साहित किया जाए अथवा उनके खिलाफ हिम्मत से खड़े हों I पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे से आम मुसलमानों को दूरी बनाए रखने का साहस भी करना चाहिए, क्योंकि गलतफहमियों को दूर करना आज की ख़ास और बड़ी जरूरत है I
इन दिनों बिलावजह ही जानबूझकर गौवध और गौमांस को मुस्लिमों से जोड़कर देखने का उपक्रम कर बयानबाजी की जा रही है, जबकि कुरआन शरीफ में गौमांस को कई बीमारियों का कारण बताया गया है I (Kuran Sharif: Akarmool bakar fahinaha saiydul bahaisah Meaning: Respect the cow because it is the leader of 4 legged animals. The milk, ghee (shifa), butter of cow is nectar. Its flesh is the main cause of all the diseases. –Kuran sharif para 14 rukwa 7-15). राष्ट्रीय मुस्लिम मंच द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दिनांक 16.11.1994 के सन्दर्भ में बताया गया था कि बाबर से बहादुर शाह जफ़र तक के शासन काल में गोहत्या प्रतिबंधित थी I बहादुरशाह जफर ने स्वयं मुनादी फिरवाई थी कि बकरीद पर गाय की कुर्बानी करने वाले को तोप से उड़ा दिया जायेगा I यह देवबंद के फतवे का सार है कि “गो हत्या करने वाले के विरुद्ध, क़यामत के दिन, मोहम्मद साहब गवाही देंगे” I मुस्लिम धर्मगुरुओं से गुजारिश है कि राष्ट्रहित और राष्ट्रीय एकता को ध्यान में रखते हुए, इन तमाम बातों का जोरशोर से प्रचार करना चाहिए I
हिन्दुओं से मेरी प्रार्थना है कि उस षड्यंत्र को समझें, जो बड़ी तरकीब से चलाया जा रहा है I आखिर हिन्दुओं के साथ हुए अत्याचारों को मीडिया द्वारा नहीं दिखाए जाने में मुस्लिमों का क्या हाथ है ? मैं सोचता हूं कि सोश्यल मीडिया का उपयोग हम सभी को हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए खुलकर करना चाहिए ताकि अपने लाभों के लिए देश में अशान्ति चाहने वाले लोगों को करारा जवाब दिया जा सके I नफरत से किसी का भी लाभ या भला नहीं होने वाला है, परन्तु भारत के विश्वगुरुत्व का सपना अवश्य चूर चूर हो जाएगा I
भारत को बारूद के ढेर पर खड़ा करने वाले लोग कामयाब न हो, यही विनम्र प्रार्थना है I
मैं सभी पाठकों से निवेदन करता हूं कि यदि मेरी बात में दम लगे, सच्चाई दिखाई दें, तो मानवता, राष्ट्रहित एवं राष्ट्रव्यापी शान्ति को सर्वोपरि मानते हुए, इसे सभी दूर भेजें I
— डॉ मनोहर भंडारी
लेख अच्छा है पर आपकी मान्यतायें गलत हैं। कोई मुसलमान शांति नहीं चाहता। जब तक वे अल्पसंख्यक हैं तभी तक वे शांति का ढोंग करते हैं। जैसे ही वे बहुसंख्यक हो जाते हैं उनका एकमात्र उद्देश्य सभी काफ़िरों यानी ग़ैर-मुसलमानों को मुसलमान बना लेना रह जाता है। इसके लिए चाहे कितनी भी हिंसा करनी पड़े। उनकी शांति की यही परिभाषा है।मध्य पूर्व के देशों में तो सभी मुसलमान ही हैं फिर वहाँ शांति क्यों नहीं है?
डाक्टर मनोहर लाल जी , आप का लेख अच्छा लगा . यह बात सच है कि भारत में गंदी राजनीति खेली जा रही है . १९८४ में सिखों का कत्लेआम किया गिया ,हज़ारों औरत मरद बचे बूड़े मारा दिए गए और आज तक एक को भी सजा नहीं हुई . माना सिखों में भी कुछ बुरे लोग थे लेकिन इस की सजा सारी सिख कौम को देनी कहाँ का निआये है ? गुजरात में किया हुआ ,कौन नहीं जानता ? नाथू राम ने महात्मा गांधी को मारा ,लेकिन मैं पूछता हूँ ,कितने हिन्दुओं से बदला लिया गिया ? राजिव गांधी को भी एक हिन्दू ने ही मारा ,कितने तामलों से बदला लिया गिया ? पाकिस्तान में आजादी के वक्त वहां हिन्दू १४% थे ,अब मुश्किल से २% रह गए ,बाकी सभ मुसलमान बना दिए गए और अभी तक हिन्दू वहां सेफ नहीं हैं , मैं पूछता हूँ किस ने आज तक उन विचारे हिन्दुओं के लिए कुछ किया ? कोई भी नहीं बोला . एक तरफ घर वापसी की बात हो रही है और दुसरी तरफ दलितों को इसाई और मुसलमान बन्ने को मजबूर किया जा रहा है किओंकि उन को तो मंदिरों में भी जाने नहीं दिया जाता ,फिर वोह हिन्दू कैसे हो गए ? आज सुआमी दया नन्द जी को पड़ने और सोचने की जरुरत है .
भाई साहब, आपको शायद यह पता नहीं है कि जब गोडसे जी ने गांधी को मारा था तो कांग्रेसियों ने मराठी ब्राह्मणों के ख़िलाफ़ जमकर हिंसा की थी क्योंकि गोडसे मराठी ब्राह्मण थे। इसी तरह कांग्रेसियों ने १९८४ में सिख बंधुओं को मारा था।
वास्तव में गांधी की अहिंसा का जाप करते हुए भी कांग्रेस ने सबसे ज्यादा हिंसा की है। यही पाखंड है।
विजय भाई , जानकारी के लिए धन्यवाद ,मराठी ब्राह्मणों के साथ कांग्रस ने ऐसा क्या था मुझे गियात नहीं था . इस बात से भी सहमत हूँ कि मुसलमान हमें काफर समझते हैं ,आइसिस इस की ताज़ा मिसाल है और अफगानिस्तान में हज़ारों साल पुराना बुध का बुत तोडना भी इतहास रीपीट हुआ दर्शाता है .
भारत के ही क्यों आदरणीय? संपूर्ण विश्व के अधिकांश मुस्लिम भाई शांति चाहते हैं किंतु वो अपने धर्म के नामपर इतने विवश हो उठते कि कट्टर होकर जिहाद आदि का सहारा लेना पड़ता उन्हें। किसी को मारकर आतंकवादी भी फूट-फूटकर रोते होंगे निश्चित रूप से ऐसा मेरा नितांत व्यक्तिगत मत है
आपका मत बिल्कुल गलत है। इस्लामी आतंकवादियों को हत्याएँ करने मे आनंद आता है। जब भी कोई आतंकवादी ज़िंदा पकड़ा जाता है उसे यह कहने में कोई संकोच नहीं होता कि वह जानबूझकर अपनी धार्मिक निष्ठा के अनुसार हत्यायें करता है और इसका उसे कोई पश्चात्ताप नहीं है।