गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

गली में कभी आप मिलते रहे हैं

धड़कते हुये दिल मचलते रहे हैं

वफ़ा में कदम सोच कर के रखो तुम
सफर भी वफ़ा के बदलते रहे हैं

जमाना अगर ये बदल भी गया तो
वफ़ा में सदा लोग जलते रहे हैं

लबो पर ख़ुशी चारसू है मुकम्मल
मगर लोग फिर भी सिसकते रहे हैं

हमारे जहाँ का चलन ये निराला
धनी से सभी लोग डरते रहे हैं

गुजर जो गया “धर्म” तूफ़ान आ कर
लुटा कर जहाँ हाथ मलते रहे हैं

— धर्म पांडेय