तेज़ाब पीड़िता …
जाने किस कुसूर की मिलती है सज़ा !
क्यूं चुप है यह समाज और यह जहाँ !
बीत रहे थे मुस्काते मेरे पल और समाँ !
क्यूं खामोशी और बेबसी से भर दी ज़िंदगी बेवजह!
आइना देखूं तो खुद से सवाल करती है आत्मा !
क्या असली चेहरा यही है समाज का बता !
क्यूं एकतरफा प्यार किसी का बन गया मेरा गुनाह !
क्या मर्जी से जीने का पुरुषों का हक है जहाँ !
बदसूरत सी ज़िंदगी अपनी लगती मैं जाऊं कहाँ !
घृणा और उपेक्षा से देखी जाती हूँ अब मैं सदा !!!
कामनी गुप्ता ***
तेज़ाब पीड़ित की व्यथा को आपने अच्छी तरह व्यक्त किया है।
बहुत धन्यवाद सर जी