ग़ज़ल
यूँ अहले – यकीं के भरम देखते हैं,
तमाशा -ए- दैरो – हरम देखते हैं।
ख्वाबो-खयालों में, बुत में, हरम में,
तुम्हारी ही सूरत, सनम देखते हैं।
समंदर में कश्ती को करने से पहले,
मुखातिब हवाओं का दम देखते हैं।
यूँ क्या देखते हो,जो पूछा, तो बोले,
‘तुम्हें न दिखेगा जो हम देखते हैं’।
चढ़ाए हुए हैं गरज़ के जो चश्मे,
वो,तय है, निगाहों से कम देखते हैं।
मोहब्बत में दिल,’होश’,देने से पहले,
तरीका -ए- अहले – सितम देखते हैं।
वाह वाह ,किया बात है ,बहुत खूब .
धन्यवाद