जाग तेरे सोने का वक्त नहीं है….
भोर होने को है, सपनें संजोने का वक्त नहीं है।
आलस त्याग के अब उठ,जाग तेरे सोने का वक्त नहीं है॥
बांट रही है खुशियाँ सुबहा , चल तू भी अपना हक ले।
ये आलस में नाहक ही, खोने का वक्त नही है
आलस त्याग के अब उठ, जाग तेरे सोने का वक्त नही है….
इतना भी मत सो, कि किस्मत ही सो जाए
चल कर्म का अट्ठाहस कर, ये रोने का वक्त नही है….
आलस त्याग के अब उठ, जाग तेरे सोने का वक्त नही है….
ये निंद्रा सब कुछ, निंद्रा निंद्रा कर देगी।
बोझल पलकों के बस, अब होने का वक्त नही है…
आलस त्याग के अब उठ, जाग तेरे सोने का वक्त नही है….
तेरी नींद छीन सकती है, आने वाली नस्ल की सुबहा।
अस्मत खतरे में है, चुप होने का वक्त नही है…..
आलस त्याग के अब उठ, जाग तेरे सोने का वक्त नही है….
सतीश बंसल
अति सुंदर रचना