कविता

जाग तेरे सोने का वक्त नहीं है….

भोर होने को है, सपनें संजोने का वक्त नहीं है।
आलस त्याग के अब उठ,जाग तेरे सोने का वक्त नहीं है॥

बांट रही है खुशियाँ सुबहा , चल तू भी अपना हक ले।
ये आलस में नाहक ही, खोने का वक्त नही है
आलस त्याग के अब उठ, जाग तेरे सोने का वक्त नही है….

इतना भी मत सो, कि किस्मत ही सो जाए
चल कर्म का अट्ठाहस कर, ये रोने का वक्त नही है….
आलस त्याग के अब उठ, जाग तेरे सोने का वक्त नही है….

ये निंद्रा सब कुछ, निंद्रा निंद्रा कर देगी।
बोझल पलकों के बस, अब होने का वक्त नही है…
आलस त्याग के अब उठ, जाग तेरे सोने का वक्त नही है….

तेरी नींद छीन सकती है, आने वाली नस्ल की सुबहा।
अस्मत खतरे में है, चुप होने का वक्त नही है…..
आलस त्याग के अब उठ, जाग तेरे सोने का वक्त नही है….

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

One thought on “जाग तेरे सोने का वक्त नहीं है….

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    अति सुंदर रचना

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