सुशासन बाबू से
अपराधी के संग तू घूमे , और हमें गरियाता है
कल तक जिससे लड़ता था तू , आज मित्र का नाता है
जो बाइज्जत बरी हुए हैं, फिर भी तेरे दुश्मन हैं
वो कानून से सजायाफ़्ता, लेकिन तुझको भाता है
खाऊँगा न खाने दूँगा, बोला तो तुम चिढ़ बैठे
गलबहियां तुम उसके डालो, जो चारा खा जाता है
मन में जो आए बकता वो,तुझको भी न छोड़ा है
बाद मे कहता कोई शैतान, मुझसे ये कहलाता है
खैर नतीजा कुछ भी आए, लेकिन यूं ना जहर उगल
उसका क्या है वो तो अक्सर, ज्यादा ही गिर जाता है
— मनोज “मोजू”