मेरी कहानी 68
कराची से हम चल चुके थे .वोह पाकिस्तानी लड़का मेरे साथ बैठा था लेकिन वोह इतना नहीं बोल रहा था जितना मैंने सोचा था . हो सकता है वोह मेरी पगड़ी देख कर कुछ झिझकता हो .कुछ भी हो मुझे तो कुछ हौसला हो ही गया था .वोह लड़का बार बार एअर होस्टैस को बुलाता और कभी कुछ मांगता ,कभी कुछ .जब भी वोह बोलता उस की अंग्रेजी सुन कर मैं हैरान हो जाता किओंकि मेरे खियाल से तो वोह सब कुछ गलत बोल रहा था ,वोह टूटे टूटे लफ्ज़ बोलता लेकिन उन की अंग्रेजी वोह समझ लेतीं और उस को जो मांगता वोह दे देतीं . मन ही मन में मैं सोच रहा था कि ऐसी अंग्रेजी लिखने से तो हम को अछे मार्क्स ही नहीं मिलते थे ,यह तो सब गलत बोल रहा था लेकिन सोचता था कि कुछ भी हो मुझ से तो अच्छा ही था .
अब गोरे लोगों ने शराब के आर्डर देने शुरू कर दिए थे .तकरीबन हर गोरा गोरी के सामने बीअर शराब के ग्लास रखे हुए थे .उस पाकिस्तानी ने मुझ से पुछा कि क्या मैं कोई ड्रिंक लूँगा ?. जब मैंने नहीं में जवाब दिया तो उस ने लड़की को डब्बल विस्की का आर्डर दिया . कुछ देर बाद वोह पाकिस्तानी लड़का विस्की में कोई और ड्रिंक मिला कर पी रहा था लेकिन मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था किओंकि मैं अपने डैडी को पीते देखता ही रहता था . सभी गोरे बार बार ड्रिंक का आर्डर दे रहे थे और मैं चुप चाप बैठा सब देख रहा था .मैंने जिंदगी में इस से पहले बहुत कम गोरे लोग देखे थे ,एक ने हमारे कॉलेज में लैक्चर दिया था और कुछ जब जवाहर लाल नेहरू को मिलने गए ,तब देखे थे लेकिन इतने इकठे गोरे कभी नहीं देखे थे . कुछ गोरे नशे में गाने लगे थे जो मुझे बहुत अजीब लग रहे थे क्यों कि मुझे तो उन का एक लफ्ज़ भी समझ नहीं आ रहा था . पास बैठा पाकिस्तानी ड्रिंक पे ड्रिंक ले रहा था और कुछ कुछ शराबी होने लगा था .अब मुझे कुछ चिंता होने लगी कि वोह कुछ कर ना दे .
कुछ देर बाद लड़किआं खाने का आर्डर लेने आ गईं और हर यात्री को पूछने लगी। वैसे तो मैं मीट खा लेता था लेकिन सोचा ,क्या पता कैसा हो क्योंकि मैं ने सुन रखा था कि अंग्रेज़ों का खाना हम से खाया नहीं जाता। मैंने वेजिटेरिअन खाने का आर्डर दे दिया। सारे एरोप्लेन में खाने की भीनी भीनी खशबू आ रही थी। खाने की ट्रे आने लगीं। अब मेरी झिजक दूर हो गई थी। मैंने ट्रे को खोला और देख कर खुश हो गिया क्योंकि खाना इंडियन था। पाकिस्तानी ने नॉन वैज लिया था जिस में चिकन भी इंडिया की तरह ही दीख रहा था। खाने में मिर्च नाह के बराबर थी लेकिन मुझे बहुत स्वादिष्ट लगा। इतना अच्छा खाना मैंने ज़िंदगी में पहली दफा ही खाया क्योंकि इस से पहले मैं ने सिर्फ एक दफा ही जालंधर रैस्टोरैंट में डैडी के साथ खाना खाया था। खाना खा कर बहुत से लोग आँखें बंद करके रिलैक्स होने लगे थे लेकिन मैं तो बाहर की तरफ ही देख रहा था। हम बादलों के ऊपर उड़ रहे थे ,कभी कभी बादल ना होते तो नीचे कभी कोई पहाड़ी दिखाई देती तो कभी कोई शहर आ जाता जिस के मकान बच्चों के खिलौनों जैसे लगते।
कुछ देर बाद अनाउंसमेंट हुई कि हम बैरूत एअरपोर्ट पर लैंड होने वाले हैं। ऊपर से समुन्दर के पानी का रंग नीला दिखाई दे रहा था ,यह पानी का नज़ारा अभी तक भूल नहीं सका हूँ। इतना सुन्दर था जैसे नीचे नीले रंग का कपडा बिछा हो। बैरूत एअरपोर्ट पर लैंड होने के बाद हम को एअरपोर्ट के लाउंज में बिठा दिया गिया। कुछ लोग शॉपिंग करने लगे , वोह पाकिस्तानी लड़का भी घूमने लगा लेकिन मैं वहीँ बैठा रहा। यह पाकिस्तानी लड़का इंग्लैण्ड में ही काम करता था , इसी लिए उन को किसी बात की झिझक नहीं थी। शायद दो घंटे के बाद हम फिर एरोप्लेन में बैठ गए और आसमान में उड़ने लगे। अब की उड़ान बहुत लंबी थी और कुछ बोरियत लगने लगी थी। जैसे जैसे उड़ते जा रहे थे दिन खत्म होने को नहीं आ रहा था।
बहुत घंटे उड़ने के बाद अनाऊंसमैंट हुई कि हम हीथ्रो एअरपोर्ट लंदन लैंड होने वाले थे। मेरी मंज़िल करीब आ रही ही और मैं नीचे देखने लगा। नीचे धूप दीख रही थी। बेछक मैं हीथ्रो पहुँचने वाला था लेकिन मेरी मंज़िल अभी दूर थी क्योंकि मैंने लंदन से एक और फ्लाइट बर्मिंघम के लिए लेनी थी और यह साथ ही बुक हो चुक्की थी। जब मैं अपना सामान ले कर लाउंज में बैठा तो वोह पाकिस्तानी तो पता ही नहीं कहाँ चले गिया था और मैं वहां बैठा सोच रहा था कि अब मैं क्या करूँ। आज तो बच्चे काम के सिलसिले में सारी दुनिआ घुमते रहते हैं लेकिन ५३ साल पहले मेरी स्थिति एक पागल जैसी थी।
एअरपोर्ट पर दूर दूर तक एक भी इंडियन दिखाई नहीं दिया . मुझे पिछाब आया हुआ था और सामने लेडीज़ और जैंटलमैन लिखा हुआ था लेकिन मुझे कुछ नहीं पता था कि इस में लोग क्यों जा आ रहे हैं। मेरे इर्द गिर्द परिओं जैसी गोरी लड़किआं लड़कों के मुंह में मुंह डाले किसिंग कर रही थी और मुझे बहुत अजीब लग रहा था और सब से बड़ी बात वोह लड़किआं स्कर्ट पहने हुए थीं जो मैंने कभी नहीं देखी थी। कुछ देर मैं बैठा रहा और मन में अंग्रेजी याद करके मैं एक गोल काउंटर पर खड़ी गोरी लड़की की ओर गिया और उस को अपना टिकट दिखाया और कहा कि मैंने बर्मिंघम को जाना था।
इस से पहले कि मैं और लिखूं ,यह बताना चाहूंगा कि गोरे लोगों की जितनी भी नुक्ताचीनी हम कर लें लेकिन इतनी मदद करते हैं कि इंडिया में हम सोच भी नहीं सकते। उस लड़की ने मेरा टिकट देखा ,फिर उस ने अपनी साथी लड़की को कुछ बोला और मुझ को कहा ,कम ऑन मिस्टर सिंह ! और उस ने मेरा बैग पकड़ा और मैं उस के साथ चल पड़ा। तकरीबन दस मिनट चल कर एक काउंटर पर जा कर गोरी लड़की खड़ी हो गई और काउंटर पर खड़ी लड़की को कुछ बोला और मुझे बाई बाई और यह कह कर चल पडी कि अब यह लड़की मेरी मदद करेगी। इस नई लड़की ने मेरा अटैचीकेस लिया ,उस पर एक लेबल लगाया और मुझे बोली ,” मिस्टर सिंह हैव ए सीट “.
कोई आधे घंटे बाद वोह लड़की मेरे पास आई और बोली ,” मिस्टर सिंह फौलो दीज़ पीऊपल “. और भी बहुत लोग थे जिन्होंने बर्मिंघम जाने वाले प्लेन में बैठना था। दो मिनट चलने के बाद हम एरोप्लेन के नज़दीक पौहंच गए जो कुछ दूर खड़ा था। इन यात्रिओं में भी कोई इंडियन नहीं था, सभी अँगरेज़ थे। जब हम एरोप्लेन के भीतर गए तो एअर होस्टेस बोली, ” प्लीज़ सिट वेअर ऐवर यू लाइक “. अब तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं बस में बैठने लगा हूँ क्योंकि यह प्लेन बहुत छोटा सा था। आधे घंटे में हम बर्मिंघम एयरपोर्ट पर आ पुहंचे। अब तो कोई चैकिंग नहीं थी और मैं अपना अटैचीकेस और बैग ले कर बाहर आ गिया। अब तो बर्मिंगम एयरपोर्ट एक बहुत बड़ी इंटरनैशनल एयरपोर्ट है लेकिन उस समय यह ऐसी थी जैसे एक बड़ा सा बसों का अड्डा हो।
मैं बाहर आ कर एक बस शैल्टर के नीचे खड़ा हो गिया। मेरे पास तीन पाउंड थे। सोच रहा था कि टैक्सी कैसे लूँ ,तभी दो सिंह आते दिखाई दिए। उन को देख कर ही मुझ में हौसला बड़ गिया। दिली से रवाना होने के बाद यह पहले इंडियन मुझे मिले थे ,वोह आते ही बोले ,” सरदार जी आप के साथ कोई और भी आया है ?” मैंने कहा नहीं तो, वोह आपस में बातें करने लगे। वोह कहने लगे कि उन के भाई ने आना था और वोह उसे लेने के लिए आये थे। मुझे अपनी फ़िक्र थी कि मैं किया करूँ ,इस लिए मैंने उन लोगों को कहा ,” भाई साहब मैंने वुल्वरहैम्टन जाना है और मेरे पास तीन पाउंड हैं ,किया आप मेरे लिए एक टैक्सी का प्रबंध कर सकते हैं ?”.
उन लोगों ने आपस में कोई बात की और मुझे कहने लगे ,” चलो ,हम तुझे छोड़ आते हैं ” और अपनी कार की ओर चलने लगे। उन्होंने मेरा अटैचीकेस और बैग अपनी गाड़ी में रखा और चलने लगे। अब कुछ कुछ अँधेरा होने लगा था लेकिन शाम के दस वज चुक्के थे। १९ जून को मैं दिली से चला था और अभी भी १९ जून ही थी ,यानी दिन इतना बड़ा हो गिया था क्योंकि गर्मिओं के दिनों में इंडिया और इंग्लैण्ड की घड़ीओं का साढ़े चार घंटे का फर्क होता है और वैसे भी दस वजे के बाद अँधेरा होने लगता है ,दूसरे २१ जून तक दिन बढ़ते ही जाते हैं और दस साढ़े दस वजे तक भी लौ रहती है।
हम बर्मिंघम सिटी सेंटर की और बढ़ने लगे। मुझे हैरानी हुई, कहीं से भी गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ नहीं आ रही थी ,इतनी शान्ति थी कि लगता था जैसे हमारे इर्द गिर्द कोई गाड़ी ही न हो और सफाई इतनी कि मैं तो देख देख हैरान हो रहा था , किसी के गंदे कपडे दिखाई नहीं दिए। गाड़ी के दोनों तरफ मैं देखता जा रहा था। फिर अचानक ऐक सिंह दूसरे से बोला ,” ग्लास पीने का खियाल है ?”. दूसरे ने जवाब दिया ,” चलो दो दो ग्लास पी लेते हैं “. फिर वोह अपनी गाड़ी एक बहुत बड़े पब्ब की कार पार्क में ले गए और पार्क करके पब्ब के भीतर जाने लगे। इंडिया के संस्कारों की वजह से मैं डर रहा था की यह सिंह मेरे साथ कोई हेरा फेरी न कर लें और मेरा अटैचीकेस कही गुम ना कर दें लेकिन मेरी यह सोच बेबुनिाद ही थी क्योंकि यहां तो लोग इतने ईमानदार हुआ करते कि सड़क पर पड़े सोने की चीज़ को भी उठा कर उस के मालक को ढूंढने की कोशिश करते थे ,इतनी ईमानदारी होती थी।
जब हम पब्ब में दाखल हुए तो सारा पब्ब गोरे गोरिओं से भरा हुआ था और आज वैसे भी वीकैंड था। सारी कुर्सीआं भरी हुई थीं और लोग खड़े हो कर हाथों में बड़े बड़े ग्लास लिए बियर पी रहे थे और एक गोरा अकॉर्डियन वजा रहा था और कुछ गा रहे थे। सिगरेट के धुएं से सारा हाल जिस को स्मोक रूम कहा जाता है ,भरा हुआ था। सिंह जी ने दो ग्लास बियर के लिए और मुझ से पुछा कि क्या मैं भी बियर लूंगा ? जब मैंने कहा कि नहीं तो उन्होंने मेरे लिए औरेंज जूस का ग्लास ले दिया और पीने लगे। उन्होंने जल्दी जल्दी ग्लास खत्म किये और पब्ब के बाहर आ गए। अब हम सिटी सेंटर को पार कर चुक्के थे और वोल्वरहैम्पटन की तरफ जा रहे थे। सड़क पर एक गोरा लड़का खड़ा लिफ्ट मांग रहा था तो सरदार जी ने गाड़ी खड़ी कर ली और उस को पुछा कि उस ने कहाँ जाना था। गोरे ने किसी टाऊन का नाम बताया और वोह मेरे साथ पिछली सीट पर आ बैठा। सिंह जी उस गोरे से बातें करने लगे।
जल्दी ही हम वुल्वरहैम्पटन पहुंच गए। वोह गोरा रास्ते में उत्तर गिया था और हम मेरे डैडी के ठिकाने के दरवाज़े पर पहुंच गए। जब दरवाज़े पर दस्तक दी तो कुछ देर बाद डैडी ने दरवाज़ा खोला और मुझे देख कर हैरान हो कर बोले ,” यह किया ?तुम ने तो कल को आना था ?” . वोह सिंह जी जाने लगे तो डैडी ने उन को अंदर आने को बोला लेकिन वोह कहने लगे कि सुबह को उन्होंने काम पर जाना था। डैडी और मैंने उन का धन्यवाद किया और वोह चले गए और साथ ही मेरे लिए एक याद छोड़ गए क्योंकि मुझे कभी भी वोह सिंह भूले नहीं। अटैचीकेस ले कर मैं कमरे के अंदर आ गिया। डैडी से बीअर की महक आ रही थी क्योंकि शनिवार और रविवार को सभी बियर पीते थे ,हमारे लोगों की यही एक एन्टरटेनमेंट होती थी और ९९% लोग वीकेंड पर बियर पीने जाते थे।
डैडी ने मुझ को पुछा कि आज मैं कैसे आ गिया क्योंकि जो मैंने टेलीग्राम भेजी थी उस पर तो बीस जून लिखा हुआ था। अब मुझे अपनी गलती का पता चला क्योंकि मैंने तो सोचा था कि १९ जून को चल कर बीस जून को पौहंचुन्गा लेकिन यह मुझे पता नहीं था कि एक तो इंडिया और इंग्लैण्ड के टाइम का साढ़े चार घंटे का फर्क था और दूसरे जैसे जैसे मैं इंग्लैण्ड की तरफ जाता रहूँगा दिन बड़ा होता जाएगा और उसी दिन पौहंच जाऊँगा। खैर डैडी ने मुझे पुछा कि अगर भूख लगी है तो मैं मीट खा लूँ क्योंकि इस वक्त रोटी के इंतज़ाम का मुश्किल था। मैंने कहा ,चलो मीट ही खा लेता हूँ।
डैडी ने अपने चारपाई के नीचे से मीट का पैन निकाला और मुझे पकड़ा दिया। मैंने एक पीस उठाया और मीट खाने लगा लेकिन मुझे कुछ स्वाद नहीं आया और यह मीट इंडिया के मीट से बहुत भिन्न था। एक पीस ब्रैड का खाया लेकिन कुछ भी मज़ा नहीं आया। हम सोने की तैयारी लगे। एक ही डब्बल बैड थी और जैसी डैडी ने कहा हम दोनों एक ही बैड पर सो गए। इस से पहले बचपन में हम बाप बेटा कब सोये थे मुझे कुछ भी याद नहीं लेकिन यह एक मजबूरी थी, हालात ही कुछ ऐसे थे। यह इंग्लैण्ड में मेरी पहली रात थी।
चलता…
आपकी पहली हवाई यात्रा का वर्णन पढकर मज़ा आ गया।
भारत से इंग्लॅण्ड की यात्रा का रोचक एवं प्रभावशाली वर्णन अच्छा लगा। हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी।
धन्यवाद ,मनमोहन भाई .
आपकी लेखनी यात्रा का वर्णन रोचक करती है
सादर
विभा जी , प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद .