लघुकथा : अबला कौन ?
सुबह सुबह माया कामवाली बाई ने समाचार दिया कि कमलाकर की पत्नी चल बसी ,पड़ोस का मामला है, बैठने जाना होगा। सरिता ने सवेरे खाने के साथ ही श्याम के लिए बच्चो के नाश्ता बना दिया और बेटी को बता दिया कि मुझे आने में देर होगी श्याम को क्युकि ऑफ़्फ़िस के बाद कमलाकर जी के यहाँ बैठक में जाना है तो भाई का ध्यान रखे। दादी को भी नाश्ता करा समय पर दवा दे देना।
बैठक में पंडित गीता पाठ कर रहा था वो भी बैठ गई ,पर पंडित के पाठ से ज्यादा ओरतो की कनफुसियां ज्यादा सुनाई दे रही थी कि बेचारा कमलाकर दो बच्चो की जिम्मेदारी कैसे संभालेगा ! ऑफिस और घर ,बच्चे, अकेला क्या क्या देखेगा ,शादी कर देनी चाहिए।
अभी जुम्मा जुम्मा दो दिन हुवे और बेचारी को गए और शादी ! खैर छोड़ो उसको घर की चिंता थी बैठक खत्म हो तो घर जाये बच्चे अकेले हैं। मोअन्त् के जाने बाद सास ने ग़म में बिस्तर पकड़ लिया, दो बच्चों के साथ उनकी भी पूरी जिम्मेदारी और ऑफिस भी फूल टाइम मेड रखने की हैशियत नही , माया से सफाई बर्तन के काम करवाने में भी कितनी कतरब्योंत खर्चे में करनी पड़ती है।
माया की काम के साथ जबान भी फुर्ती से चलती है। आते ही मोहल्ले के समाचार सुननी शुरू हो जाती है, आज उसी ने बताया कमलाकर ने अपनी साली से शादी कर ली। मैं चौंक गई अभी तो पंद्रह दिन ही हुवे हैं । हां मेम सॉब वो तो सही हे पर बेचारे अकेले क्या क्या देखते घर ऑफिस और बच्चे ?फिर खुद ही चुप होगी क्युकी वो खुद भी तो दोहरी जिमेदारी निभा रही हैं। में सोचने को मजबूर हो गयी कि बेचारा कौन अबला कौन ?
— गीता पुरोहित
लघु कथा अच्छी लगी .
सुंदर लघु कथा