कविता

“कुण्डलिनी छंद”

पावन पर्व दशहरा पर आप सभी को हार्दिक बधाई सह मंगल शुभकामना प्रिय अग्रज/अनुज स्नेहीजन, सादर प्रणाम/आशीर्वाद………………………….कुछ विशेष विषयों पर मेरी नविन कुण्डलिनी छंद आप सभी से कुछ कहना चाहती है, आशीष प्रदान करें……जय माता दी, जय श्री राम ……

कुण्डलिनी-1
बिती रात डरावनी, खुलने लगी दुकान
पसर गयी है सादगी, एक एक पहचान
एक एक पहचान, करो अब इनसे सौदा
आये हुए छविमान, दिखाने किसने रौदा
कह गौतम कविराय, यही है इनकी नीती
अर्थी दें सुलगाय, जनाजे पर क्या बिती

कुण्डलिनी-2
वापस कत कबहू भवा, मिला हुआ सम्मान
हिम्मत है तो कर बता, वीरों सा बलिदान
वीरों सा बलिदान, सराहे जिसको दुनियाँ
है साहित्य महान, दुकाने शोभे धनियाँ
कह गौतम कविराय, नहीं यह सावनी पावस
छनमहि भिजवे आय,बहुरि नहि आवत वापस

महातम मिश्र “गौतम”

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ