उपन्यास अंश

अधूरी कहानी: अध्याय-37: जयपुर काॅलेज

एक जिद्दी लड़की जिसका नाम रेनुका था उसे जयपुर बहुत पसंद था। उसके मामाजी जयपुर में ही रहते थे। तब उसने अपने घर वालों से जिद की कि उसे जयपुर जाना है और आगे की पढ़ाई वहीं से करनी है। उसके घर वालों ने मना किया पर फिर भी वह उसकी जिद के आगे नहीं टिक पाये और उसे जयपुर जाने दिया पर। उसके मामा के घर नहीं बल्कि हाॅस्टल में रहने की सलाह दी। रेनुका मान गयी और जयपुर चली गई काॅलेज में एडमिशन ले लिया और वही हाॅस्टल में रहने लगी।

एक दिन वह अपनी क्लास में जा रही थी एक लड़का जिसका नाम समीर था वह रेनुका के पीछे जा रहा था। फिर अचानक किसी लड़के ने रेनुका का दुप्पटा खींचा रेनुका ने पीछे मुड़कर देखा तो पीछे समीर था। रेनुका ना सोचा समीर ने ही ये किया होगा और समीर को रेनुका ने चांटा मार दिया फिर रेनुका अपनी क्लास में चली गयी समीर का उस दिन काॅलेज में पहला दिन था समीर को बहुत बुरा लगा और वो भी इस बात का कि रेनुका को गलतफहमी हुई थी फिर भी समीर ने सोचा रेनुका से माफी मांग लेता हूं।

फिर समीर क्लास में गया और रेनुका के पास गया वहां रेनुका की दोस्त भी थी समीर के हाथ कांप रहे थे। समीर ने रेनुका से कहा- रेनुका तुम्हें गलतफहमी हुई थी वह मैं नहीं कोई और था। फिर भी आई एम साॅरी और इसी वक्त हड़बड़ाहट में समीर के हाथ रेनुका के कंधो तक पहुँच गये। फिर रेनुका ने समीर को एक और चांटा मारा और बोली- तुम्हें बिल्कुल तमीज नहीं हैं क्या? तुम पागल हो और रेनुका वहां से चली गई।

समीर को बहुत बुरा लग रहा था और गुस्सा भी आ रहा था सब लोग समीर को ही देख रहे थे और सोच रहे थे आखिर हुआ क्या है फिर समीर भी चुपचाप वहां से चला गया।

दयाल कुशवाह

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