गीतिका
गीत बन गुनगुनाती रही जिंदगी
प्रीति सी लहलहाती रही जिंदगी
देखि किसलय भ्रमर गीत गाने लगे
चाह बन के सजाती रही जिंदगी
भावना आरजू की सज़ाये रहे
मीत बन प्रीति लाती रही जिंदगी
राज भी देखता है अजब चाँदनी
दीप बन कर दिखाती रही जिंदगी
ठंड लगती रही दिल तड़पते रहे
साज़ बन गुनगुनाती रही जिंदगी
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’